खुद से भी तो मिलना सीखो —अनिता निहालानी

सद् गुरु कहते ‘हँसो हँसाओ’

खुद से भी तो मिलना सीखो,

जड़ के पीछे छिपा जो चेतन

उस प्रियतम को हर सूं देखो !

चलती फिरती है यह काया

चंचल मन इत् उत् दौड़ता,

भीतर उगते पुष्प मति के

चिदाकाश में वही कौंधता !

सत्य सदा एक सा रहता

था, है, होगा कभी न मिटता,

दृश्य बदलते पल-पल जग के

मधुर आत्मरस अविरल बहता !

दृष्टा बने जो बने साक्षी

निज आनंद महारस पाता,

राज एक झाँके उस दृग से

पूर्ण हुआ खुद में न समाता !

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