बजी विशाल वीण पर,अखंड एक रागिनी ।
जगी अजेय नींद से प्रचंड एक नागिनी ।
कि तिलमिला उठा गगन,जमीन डगमगा उठी-
रँगे ललाट रक्त से, उतर पड़ी सुहागिनी ।
अदम्य क्रान्ति छिड़ गई,दशों दिशा प्रकंपिता ।
किरण कृपाण सी चमक रही कि रक्त रंजिता ।
किरीट अग्नि पुंज का धरे, विशाल भाल पर-
सुदूर पूर्व में खड़ी ,विहँस रही नवोदिता ।
नवीन-ज्योति पुंज से, नये प्रकाश की किरण ।
बिचर रही लता-निकुंज श्रृंग पर मगन-मगन ।
कपाट रश्मि का खुला, मिटी विशाल कालिमा-
पवित्र सृष्टि को किये,मधुर प्रभात के चरण ।