नजरिया

आज उसने देखा अजब सा ख्वाब,

ख्वाब में देखा गेहूं से भरा कनसतर,

फाकों में जीने वाले ने ज्यों देखा जन्नत का मंज़र|

जिस रास्ते पर चल रहा हूँ मैं ,वहां से वापस आते देखे है ,

कुछ दीवाने ,कुछ ग़मगीन लोग,

अपने अंजाम को लेके परेशां हूँ मैं |

दिन भर भागते दोड़ते लोगो को देखती है ये सड़क,

पल भर रुको,अपने बारे में न सोच कर,दूसरों के बारे,

में भी सोचो ,कहती है ,ये बूढी सड़क |

इस से नहीं इनकार की जिंदगी मिली है जीने के लिए,

पर हकीकते जीने नहीं देंगी ,

कोई भरम पाल लो जीने के लिए|

Sunil Jain

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