पत्नी ( दोहा दशक )


पत्नी सुख की साधिका, जीवन की है अर्थ।
बिन पत्नी सुनसान जग, जीवन बनता ब्यर्थ।।1।।
जीवन की सर्वस्व निधि, विधि का सुन्दर रूप।
दिव्य गुणों से है युता, मधुमय संग अनूप।।2।।
कर्म सहचरी धर्मयुत, सत्कृत सद् आदर्श।
उत्साही सुख देत है, निज कर विमल विमर्श।।3।।
संग सुखद शुभ साज है, सुखद लगे दिन रैन।
बिन समीप मन व्यग्रता, चितवत नैन बेचैन।।4।।
रूप राशि हीरक लगे, निर्भय मन कर देत।
तन पर मन वारत सदा, सुखद बलैया लेत।।5।।
प्रमुदित हिय की लालसा, सकल सुमंगल साथ।
ले फेरे संगी बनी, दे हाथों में हाथ।।6।।
भार नही है भार्या, रहती ढोती भार।
अगर करें सम्मान तो, जीवन रंग बहार।।7।।
मोद प्रमोद अनेक दे, कर्म करे हर बार।
निज कुल की सत् पालिका, सत् जीवन आधार।।8।।
सदा समर्पण सम्यका, सम्बल-सभ्य सलीक।
पत्नी गृह लक्ष्मी सदा, बचन न जान अलीक।।9।।
अपनापन सबसे रखे, श्वसुर-पुत्र-पति संग।
सेवा कुल की दिव्य कर, पुलकित होता अंग।।10।।

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