फागुन- की मस्ती में है मतवाला- मन,
रंगों की बौछारों में भीगा है तन-मन,
फागुन आयो है द्वार हमारे लेके पतझड़,
देहरी से आँगन सावन सा भीगा फागुन |
मौसम भी है बौराया- इस फागुन में,
बौराया पीली सरसों का रंग फागुन में,
रंग- ब्रज में गोपीं ढूंढें कान्हा का संग,
जैसे बौराया हो सखियों का नव- यौवन |
बरसाने की होली और ब्रज का फागुन ||
फागुन- की मस्ती में है मतवाला मन—
बहक गया है भोर- सुबह का इस फागुन में,
भंग का रंग अंग में बहका है इस फागुन में,
मौसम और ये मन गली- गली में बदला है,
रिश्ते- नातों में अठखेली आयी है इस फागुन में |
जैसे नांचें शिव- शंकर गा-गाकर फाग का फागुन ||
फागुन- की मस्ती में है मतवाला मन—
मथुरा की होली हो या ब्रज-बरसाने की होली,
फागुन की मस्ती है भीगे अंगिया और चोली,
फटे- पुराने इन कपड़ों में अंगों का हो दरपन,
जैसे आये हों मिलने सुदामा-कृष्ण के आंगन |
गोकुल की गलियों में मिल गायें गोपी फागुन ||
फागुन- की मस्ती में है मतवाला मन—–
जीजा-सारी हो या देवर-भाभी की ये होली,
मिलती है सुनने को गाली- होली की बोली,
आलू के ठप्पे – फेंके जाते पानी के गुब्बारे,
प्यारे लगते हैं रंगों से पुते हुए मुंह सारे |
बुरा न मानो होली है ऐसा महीना है फागुन ||
फागुन- की मस्ती में है मतवाला मन—
देश की सौंधी मिट्टी-मिट्टी से जुड़ा है मन,
फूले हैं महुआ, वौराए-आम पास खडी जामुन,
आया है गर्मीं का मौसम बरसेगी अब आग,
सूखी है ये पोखर पर ढोलक के रंगों में फाग |
गाँव- शहर अबीर उढ़े और अमरीका में मेरा मन ||
फागुन- की मस्ती में है मतवाला मन—