प्रभु के आगे शीष झुकाऊँ


पहले ख़ुद को ढूँढू पाँऊं,
फिर अपनी पहचान बताऊँ।
बिखरे मोती माला बनाऊँ
फूलों से आँगन मै सजाऊँ।
क्या याद करूं क्या बिसराऊँ,
यह भी तो मै समझ न पाऊँ।
जो मिल जाये उसे सराहूँ,
ना जो मिला उसे भूल जाऊँ।
जीवन की सुगंध बन जाऊँ,
बरखा की फुहार बन जाऊँ।
कभी नदी सी मै बल खाऊँ,
या शांत झील बन जाऊँ।
कभी शीतल बयार बन जाऊँ,
कभी तपिश सूरज की पाऊँ।
आसमान से तारे लेकर आऊँ,
चन्द्रिमा देखकर मै मुस्काऊँ।
सागर सी गहराई पाऊँ,
पर्वत की ऊँचाई पाऊँ।
नमन करूँ वन्दना गाऊँ,
प्रभु के आगे शीष झुकाऊँ।

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