समय-चक्र


नदी पर तो बाँध बना लेते हैं सभी,
उर्जा बनाते हैं, हरित क्रान्ति लाते हैं,
सिंचाई करते हैं,
नदी का रुख़ ही मोड़ देते हैं कभी।
बादल जब गरजते हैं,
नहीं जब बरसते हैं,
आशा मे बूँदों की ,
क्या क्या नहीं करते हैं।
दो बूँद पानी आँखों से गिरा तो,
कौन रोकेगा तुम्हें अश्रुश्री,
समय ही तुम्हें रोकेगा ।
कब तक बहोगे,
और क्यों बहोगे तुम अश्रुश्री,
समय ना रुका है,
ना रुकेगा कभी,
यह वो घारा है,
जिसका बाँध न्यारा है।
यह एक चक्र है,
असीम है, अनन्त है।
सुबह से शाम है ,रात से दिन है।
घड़ी की सुंइयाँ अथक चलती है,
कभी नहीं थकती हैं।
समय-चक्र पर बाँध,
ना बना है ना बनेगा कभी।

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