सपने

अलका सैनी

कल रात मुझे पता चला
सपनों में भी कविताएं बनती है
सपनों की धुंधली आकृतियाँ
स्मृतियों के कोहरे से बनती है
कल रात उसने मुझे सपनों में घुसकर जगाया
मैं बुदबुदाई और ज़ोर से चिल्लाई
" माँ, मैं झूठ नहीं बोल रही
...... मेरा घर मत तोड़ो"
पास में सोये मोनू ने कहा मम्मी
तभी मेरी जीभ उलट गई
और आवाज धीमी होते होते मैं फिर सो गई

कल ही मुझे पता चला सपनों की
एक दुनिया होती है
जिसमे नायक
खलनायक और साधारण पात्र होते है
लड़ते है ,झगड़ते है
रोते है ,हँसते है
मगर किसी का कुछ नहीं बिगड़ता
सभी अक्षुण्ण

पर असली दुनिया में हाहाकार
शोरगुल आपाधापी
सारी अवस्थाएँ बदलती है
मनोरोग से प्रेमरोग
प्रेमरोग से मृत्युयोग
नेपथ्य बदल जाता है
सारे पात्र झूठे
सारे संवाद खोखले

काश ! सपनों की दुनिया लंबी होती !

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