बरसा है सावन आँखों से,
जब याद किया तुम्हे साँसों से,
तन्हा तुम और तन्हा हैं हम,
रोती तेरी आँखे मेरी भी नम,
कर आँख मिचोनी और ठिठोला,
आकर मेरे कान में बोला,
प्यार करो बस बातों से,
बरसा है सावन आँखों से......
दिल न माना उस पल की,
तुम साथ नहीं थे उस कल की,
आदी है मेरा दिल तेरा,
चैन कहाँ तेरे बिन चेहरा,
जब उलझ पड़ा जज्बातों से,
बरसा है सावन आँखों से......
दुःख गम में डूबे तुम थे जब,
ऐसे ही हाल में थे हम तब,
कुछ दिन जब दूरियां बढ़ती गयी,
चेहरों की हंसी थी उड़ती गयी,
कितना ढूँढा तुझे रातों से,
बरसा है सावन आँखों से......
प्रकृति प्यार संग मूक हुई,
कोयल जीवन बंद कूक हुई,
वायु वंचित अब फिरती है,
ओस कहाँ अब गिरती है,
हम जकड़े हालातों से,
बरसा है सावन आँखों से......
क्या कहे कलम भी तेरे बिन,
दौड़ी जीती थी साथ में जिन,
साध के चुप्पी लाश पड़ी,
तेरे खातिर बस ये आज खड़ी,
स्याही रो दी हालातों से,
बरसा है सावन आँखों से......
§ बिजेंद्र एस. 'मनु'