भोर मे रवि रश्मि ने जब ,रजनी का है मौन तोडा,
चिरैयौं के शोर ने उषा मे संगीत छेडा,
शीत की इस भोर मे जब, कोहरे ने सूरज को छीना,
चिरैयॅा तो उठ गई हैं हमने ना बिछौना छोडा,
भानु को जब जोश आया, चीर कोहरा मुंह दिखाया.
धूप के इस कतरे को बांधना जो हमने चाहा,
बादलों की टोलियों ने षडयंत्र फिर इक रचाया,
कमरे की खिड़कियों से झोंका पवन का आया,
हमने उसे गले लगाया।