विज्ञानी जग की यही कहानी

कहते हैं विज्ञानी जग की यही कहानी
समय सदा बलवान रहा पर विजय सत्य ने जानी

ये सच है, सच रोता भी है बोझ दुखों का ढोता भी है

किन्तु दुखों को सहकर के उत्साह नहीं वो खोता भी है

ऐसे मिट कर कितनों ने तासीर सत्य की जानी

कहते हैं विज्ञानी जग की यही कहानी

श्वेत पत्र पर श्वेत कलम से जैसे कोई लिखता है

इसी तरह यदि दुःख ना हों आनंद कहाँ फिर दिखता है

बिना दुखों के सुख की कीमत बिलकुल है बेमानी

कहते हैं विज्ञानी जग की यही कहानी

दुनिया को बदलो खुद सा, या दुनिया सा बन जाओ

औरों का अनुसरण करो या जग को राह दिखाओ

किन्तु समय वश में करने को क्रान्ति पड़ी अपनानी

कहते हैं विज्ञानी जग की यही कहानी

मन बावरा फंसा रहता है सुख दुःख के घेरे में

केन्द्र बिंदु आनंद छोड़ कर भटक रहा फेरे में

दुनिया भर की ग्यानी दुनिया कैसी है दीवानी

कहते हैं विज्ञानी जग की यही कहानी

कहीं नहीं पग चिन्ह छोड़ता खग उड़ता आकाश

ज्ञान तृषा तो बुझे तभी जब हो जा स्वयंप्रकाश

अंध अनुकरण करे किसी का, दुनिया की नादानी

कहते हैं विज्ञानी जग की यही कहानी

HTML Comment Box is loading comments...
 

Free Web Hosting