विधना बड़ी सयानी रे
जीवन अकथ कहानी रे
तृषा भटकती पर्वत पर्वत
समुंद समाया पानी रे……..
दिन निकला दोपहर चढ़ी
फिर आई शाम सुहानी रे
चौखट पर बैठा मै देखूं
दुनिया आनी जानी रे……..
रूप नगर की गलियाँ छाने
यौवन की नादानी रे
अपना अंतस कभी न झांके
मरुथल ढूंढें पानी रे……..
जो डूबा वो पार हुआ
डूबा जो रहा किनारे पे
प्रीत प्यार की दुनिया की ये
कैसी अजब कहानी रे……..
मै सुख चाहूँ तुम से प्रीतम
तुम सुख मुझसे चाहोगे
दोनों रीते दोनों प्यासे
आशा बड़ी दीवानी रे…….
तुम बदले संबोधन बदले
बदले रूप जवानी रे
मन में लेकिन प्यास वही
नयनों में निर्झर पानी रे……….