ज़िन्दगी


ज़िन्दगी तुझे क्या नाम दूँ।
जानी पहचानी है तू
फिर भी अन्जान है तू।
आज शिशु है उगता सूरज है।
कल यौवन की धूप है।
जब शाम ढलने लगी,
गोधूलि तू।
शाम नीली है ,सलोनी है।
रात के प्रहर मे भी अलबेली है।
एक अनबूझी पहेली है तू,
खुली किताब भी है तू।
तू वीरान सपाट है कभी,
कभी चुलबुली सहेली है।
कभी काँटे हैं पथरीली है तू,
कभी चम्पा ,चमेली है तू।
तू शांत सागर है,
गंभीर भी है,
आँधी तूफ़ान भी है
बड़ी मनचली है तू।
मेरा तुझसे नाता कया है,
कब साथ छोड़ दे,
किसकी हुई है तू,
फिर भी जब तक साथ है,
मेरी है मेरी अपनी है
मेरी पहचान है तू,
मेरी सहेली है तू।

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