ज़िन्दगी क्या होती हे !! [ समाज में फेली विषमताओं को समर्पित]
दिनेश गुप्ता [ दिन ]

सबकी राहों मे नहीं होती हे चादर फूलों की
किसी की तक़दीर होती हे डगर शुलों की
ज़िन्दगी क्या होती हे जरा उनसे पुछो
जिनके घर रोज जंग होती हे भूख और वसूलों की
सबको नहीं मिलता जीवन मे खुशियों का संसार
हालाँकि सबकी आँखों मे होता हे सपनो का अंबार
ज़िन्दगी क्या होती हे जरा उनसे पुछो
ज़हाँ हर रोज जाता हे होंसला बेबसी से हार
सबके दिल मे होता हे आसमाँ छुने का अरमान
पर कहीं हर घडी हर पल लुटता हे आत्मसम्मान
क्या होती हे घुटन जरा उस परिंदे से पुछो
कैद हे जिसकी पिंजरे मे हर एक उड़ान
कहीं हर पल उठती और पूरी होती एक नयी फरमाइश
कही हर पल आसुओं मे धुलती हर एक ख्वाइश
ज़िन्दगी क्या होती हे जरा उनसे पुछो
जरा हर रोज होती है वजूद की आजमाइश
सुना था वक्त के साथ सब कुछ बदलता हे
कहीं भी उगता हो सूरज, उनके यहाँ रोज ढलता हे
धरती के उस टुकड़े से पुछो क्या होती ह़े जलन
जहाँ बादल हर रोज गरजता हे, मगर कभी नहीं बरसता हे

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