यमराज सत्यवान की आत्मा के पीछे-पीछे आती हुई सावित्री को देखते जा रहे थे.
इस बार उन्हें आश्चर्य हुआ कि वे मर्त्यलोक की सीमा को पार करने वाले हैं
किंतु सावित्री एक बार भी अपने पति की आत्मा को लौटाने का निवेदन नहीं
किया. उन्होंने सावित्री के चेहरे को पढ़ने का प्रयत्न किया. उसके चेहरे पर
पहले की तरह ही विजय के भाव वर्तमान थे. उनसे रहा न गया. पूछ बैठे, द्र ब
मैं स्वर्गलोक पहुँचने वाला हूँ और तुमने अपने पति की आत्मा की वापसी के
लिए भी तक निवेदन नहीं किया ?
द्र इस बार मैं पने पति की आत्मा की वापसी नहीं चाहती महाराज.
द्र तो फिर मेरे पीछे-पीछे क्यों आ रही हो ? द्र वह इस लिए महाराज कि कहीं
आप इसे पिछले सात जन्मों की तरह इस बार भी मेरा पति न बना दें.
द्र तो क्या इस बार तुम किसी और को अ पना पति बनाना चाहती हो ?
द्र नहीं महाराज. बिल्कुल नहीं.
द्र तो फिर ?
द्र अगले जन्म में मैं कुँवारी ही रहना चाहती हूँ.
द्र यह किसलिए ?
द्र अनजान न बनिए महाराज. आज का विवाहित पुरुष पने पतिधर्म का पालन नहीं
करता है और पत्नी को मेरे जैसा सती-सावित्री के रुप में ही देखना चाहता है.
इसलिए अगले जन्म से मैं अपनी सभी बहनों के हित के लिए कुँवारी ही रहना
चाहती हूँ. ब मैं सती-सावित्री नहीं, आधुनिक सावित्री कहलाना चाहती हूँ.