बहादुर बिटिया


वह रात को 9 00 बजे अपनी माँ के साथ सब्जी मार्केट से लौटने के लिये स्कूटी पेप स्टार्ट कर पाती कि तीन लुटेरे माँ की सोने की चैन झपट कर भाग खड़े हुये; माँ के लाख मना करने के बावजूद उसने तेजी से गाड़ी दौड़ाकर उन लुटेरों का पीछा किया ... भागते हुए वह शोर भी मचाती जा रही थी, पकड़ो-पकड़ो चोर ...चोर ...
अपना पीछा करते देख जुटेरे मैन रोड छोड़कर एक गली क ओर मुड़ गये ... वह भी पीछे से साथ हो ली ... बरसात की वजह से गली में कीचड़ था, जिसमें फँसकर उनकी बाईक बंद हो गई ... यह आनन-फानन निकालकर अपने कब्जे में कर ली। एक लुटेरे की बाँह पकड़कर जोर-जोर से चोर-चोर चिल्लाकर आस-पास के लोगों को इकट्ठा कर लिया; अंधेरे का लाभ उठाकर पीछे बैठे दो लुटेरे भागने में सफल हो गये, पास ही खड़े भीड़ में से किसी जागरूक पत्रकार ने पुलिस को खबर कर दी। अक्सर देर से पहुँचने वाली पुलिस मात्र दस मिनट में घटनास्थल पर पहुँच गई।
पकड़े गये व्यक्ति से पुलिस ने पूछताछ की और अपने साथियों के बारे में जानकारी चाही तो उसने अपने साथी होने से साफ इंकार कर दिया और बताया वह तो उन्हें जानता तक नहीं है। उसने तो उन दोनों को लिफ्ट दी थी। लेकिन पुलिस की सख्ती बरतने पर उसने दोनों अन्य लुटेरों के बारे में सच-सच बता दिया, जिसे कुछ ही घंटों की मशक्कत के बाद उन्हें गिरफ्तार कर पुलिस थाने लाया गया, उसकी माँ की सोने की चैन वापिस उन्हें मिल गई ... तथा शहर में काफी दिनों से चैन स्केचिंग गिरोह का भंडाफोड़ करने में उसने महती सफलता प्राप्त की।
माँ ने जब लुटेरों के पीछे भागती अपनी बेटी को देखा तो वे आशंकित हो उठी थीं कि कहीं लुटेरे किसी घातक हथियार से उसकी बेटी पर हमला न कर दंे, किंतु इन सब आशंकाओं को परे हटाके उसकी बेटी ने शहर में बहादुरी की एक नयी मिसाल पेश कर दी।
प्रदेश शासन ने उसे पुरस्कृत करने की घोषणा कर है। आज सभी समाचार-पत्रों में उसके फोटो सहित बहादुरी के चर्चे हैं, यह पड़कर उसकी माँ का अपनी इकलौती संतान के रूप में बेटी का होना दया की नहीं गौरव की बात साबित हुयी।

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