मेरे पोते यशराज यश का पहला जन्म दिवस! रौनकोँ से घिरे अपनों और महमानों के बीच ख़ुशियाँ रक्स कर रही थी. शुभकामनाओं के साथ लेते हुए अनेक खिलौने, कपड़े, और रोचक सौग़ातों के साथ मैंने भी मेरे पोते यशराज के गले में सोने की चेन पहनाते हुए एक पैकेट उसे देते हुए कहा.." यह तुम्हारी पहचान का पहला क़दम होगा और उड़ान भरने की सीढ़ी भी....."
बहू-बेटे ने जैसे औरों की सौग़ातें खोलीं वैसे मेरी भी..!! सब के मन में कौतूहल था..पर आश्चर्य !! उसमें से एक सुंदर पुस्तक निकली, सौ बाल कविताओं के साथ-साथ रंगीन आकर्षक चित्र भी थे...उन्वान पढ़ा गया " My first step to Literacy". जैसे-जैसे यश बड़ा होता रहा, ज़िन्दगी के पलटते पन्नों के साथ मैं उसे हर रात को उसी पुस्तक से एक कविता पढ़कर सुनाती और पलटते वर्कों के साथ उसकी आंखें बदलती तस्वीरों को देखती, पहचानती. सितारों की तस्वीर देखता तो कह उठता " Twinkle twinkle little star", कुर्सी के नीचे बैठी बिल्ली को देखता तो कह देता "Pussy cat, pussy cat"
अब वह सात साल का है और उसकी छोटी बहन दो साल की. आदतन ४० साल से पढ़ते पढ़ाते बच्चों के साथ इतना जुड़ गई हूँ की बाल शिक्षा मेरे भीतर एक अनोखा संसार रच बैठी है. "बहू उस बाल पुस्तक को ज़रा ढूंढ निकालना, अब समय आया है इस मुन्नी को पढ़ कर सुनाऊँ"
आज, कल, परसों, अब नहीं बाद में, सभी अवसर निकल गए पर पुस्तक हाथ न आई. "माँ वह पुस्तक शायद मैं अपनी भाभी को उसकी बेटी के लिए दे आई हूँ." बात आई गई हो गई ..और एक शाम उसकी भाभी मिली तो मैंने उसे पुस्तक की याद दिलाते हूए कहा " अब तो तुम्हारी बेटी भी छः साल की हुई है. मुझे वह पुस्तक मुन्नी के लिए चाहिए."
"पर आंटी वह तो मैंने अपनी बहन को दे दी थी. इतनी अच्छी पुस्तक से मेरी बेटी ने सरलता से कवितायेँ सीखी तो सोचा उसे दे दूं."
तब जाना की ज्ञान की विरासत भी बहती है, पर एक अलग दिशा में! जब अपने घर में दूसरी संतान आई तो वह ज्ञान की गंगा कहीं और बहती रही ......! इस विचार का अनुकरण करते हुए एक बार बहू की भाभी की बहन से पूछा "किरण, क्या वह कविता की पुस्तक तुम्हारे पास सलामत है.?"
कुछ हैरानी से मुझे देखकर कहने लगी "आँटी वह तो मैंने अपनी बहन को उनके बेटे के लिए दी है."
देवी नागरानी