वारदात


उसके अपार्टमेण्ट में गई रात चोरी की वारदात हुयी। चोरों ने रात में घर में घुसकर लोगों को मारा-पीटा और घर का सारा कीमती सामान लूट कर चले गये... शोर-शारबा सुनकर भी किसी ने मदद करने की कोशिश नहीं की.... सभी सिर्फ चीख-पुकार सुनते रहे।
सुबह लोगों की भीड़ इकट्ठा हो गयी... चर्चा का दौरा शुरू हो गया-
‘‘कुछ आवाजें तो सुनाई दे रही थी... रात में हमने सोचा मि. जोशी के यहाँ के टी.वी. में कोई पिक्चर आ रही होगी।’’
‘‘हाँ...हाँ...हमें भी शोर-सा सुनाइ्र दिया...किंतु मैं तो आॅफिस से बहुत देर से लौटा था और सुबह जल्दी ही जाना था, तो सोचा कौन रात में नींद खराब करे।’’
‘‘मैं तो जाग गई थी...सोचा कौन पुलिस के चक्कर में पड़े। वे तो ऐसे पूछताछ करते हैं जैसे चोर हम ही लोग हों या फिर चोरी हम ही ने करवाई हो।’’
‘‘न बाबा न! मैं पुलिस कचहरी के लफड़े में नहीं पड़ना पसंद करता... कौन गवाह बने फिर थाने, कचहरी के चक्क्र काटे-लेना एक न देना दो।’’
‘‘लगता है पुलिस भी इन चोरों से मिली हुयी है।’’
‘‘इस इलाके की पुलिस तो जैसे कानों में रूई ठूसे बैठी रहती है, शहर में रोज नई-नई चोरी की घटनाएँ बढ़ती जा रही हैं। प्रशासन है कि उसे कोई परवाह ही नहीं पब्लिक की।’’
‘‘पहल तो मैंने सोचा जाकर देखूँ मि. जोशी के यहाँ कि क्या हो रहा है? किंतु पत्नी ने मना कर दिया कि कहीं लुटेरों ने तुम्हारे ऊपर ही हमला कर दिया तो..यही सोचकर मैं नहीं गया, उनके यहाँ।’’
‘‘पता नहीं हमारा देश कहाँ जा रहा है?’’
‘‘जितने लोग उतने तरह की बातें किसी ने पुलिस को खबर कर दी थीकृतो सायरन बजाती पुलिस की गाड़ी घटनास्थल पर पहुँच गयी। सायरन सुनते ही सब अपने-अपने घरों में पुनः दुबक गये; कौन पुलिस के लफड़े में पड़े। कहीं गवाही में उन्हीं ही न रोक लें।
सभी ने अपने अभिमत प्रगट कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली थी।

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