कुछ मुक्तक पेश है : -


 
 ये फ़नकार सबसे जुदा बोलता है
 ख़री बात लेकिन सदा बोलता है,
 विचरता है ये कल्पनाओं के नभ में,
 मग़र इसके मुँह से ख़ुदा बोलता है ।
 
 बात दलदल की करे जो वो कमल क्या समझे ?
 प्यार जिसने न किया ताजमहल क्या समझे ?
 यूं तो जीने को सभी जीते हैं इस दुनिया में,
 दर्द जिसने न सहा हो वो ग़ज़ल क्या समझे ?
 
 मन्ज़िलों से देखिए हम दूर होते जा रहे है
 हम भटकने के लिए मज़बूर होते जा रहे है
 काम जब अच्छे किए तो कुछ तबज्जों न मिली,
 जब हुए बदनाम तो मशहूर होते जा रहे है ।
 
 शरद तैलंग

HTML Comment Box is loading comments...
 

Free Web Hosting