दोशीजा होठो पे शबनम के कतरे
लचके बदन पे कसाव जो निखरे
सावन को खुमारे जिस्म की याद
कंधो पे खुलकर ज़ुल्फ़ हरसू बिखरे.
ज़ुल्फ़ खुल गए रात की अंधियारी हे
दुनिया पे उनका खुमार तारी हे
सितारों का सुकूत दस्तक देता हे
कोई तूफ़ान आने की तय्यारी हे.
sudheer maurya 'sudheer'