देश के लोगों को कुपोषित होने से बचाने के लिए जरूरी है राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून यह बात प्रयास एवं सामुदायिक वैज्ञानिक डॉ. नरेन्द्र गुप्ता ने 25 फरवरी 2011 को होटल ऋतुराज वाटिका में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक पर चर्चा एवं सुझाव हेतु आयोजित बैठक के दौरान कही। डॉ. गुप्ता ने खाद्य सुरक्षा पर विस्तृत जानकारी देते हुए बताया कि राष्ट्र की आर्थिक विकास दर में बढोत्तरी के बाद भी देश में पोषण कि स्थिति गम्भीर बनी हुई है।
देश में आधे से अधिक 6 वर्ष से कम आयु के बच्चे जरूरी वजन से कम के है जो उनके शारीरिक एवं मानसिक विकास को प्रभावित करता है। इसी प्रकार आधे से अधिक महिलाएं एवं बच्चे रक्तातलपता से ग्रसित है। इसकी पृष्ठभूमि में देश के अधिकत्तर नागरिकों को जरूरी पोषण की अनुपलब्धता मुख्य कारण है। इस भीषण समस्या के निराकरण के लिए नागरिक संगठन निरन्तर सरकार से मांग करते रहे हैं कि सरकार सबके लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से बच्चों, गर्भवती, धात्री महिलाएं, असहाय बुजुर्ग, विकलांग इत्यादि को सस्ता अनाज एवं अन्य खाद्य सामग्री उपलब्ध करवाये। केन्द्र सरकार ने इस हेतु राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून बनाने के लिए पहल की है। इस संदर्भ में श्रीमती सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद ने एक प्रस्ताव भी बनाया है।
कार्यक्रम समन्वयक रितेष लढ्ढा ने प्रोजेक्टर के माध्यम से कानून का मसौदा पर विस्तृत जानकारी दी गई। डॉ. एस. एन. व्यास ने कहा कि कानून के जरिये बातचीत कर हम अन्न को ब्रम्ह मानकर उसकी बात करें। इसके साथ ही उन्होने कहा कि खाद्य पर भरे पेट लोगों का चिन्तन है। इस पर चर्चा बारिकी से होनी चाहिए । महाराणा प्रताप राजकीय महाविद्यालय के प्राचार्य जे.पी. वर्मा ने कहा कि समाजवादी सरकार 1990 के बाद भूमण्डलीकरण और उदारवादी धारा में चल पडे है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली भी उसी के क्रम में था। कानून निर्माण में सुझाव मांगने की प्रक्रिया में कई बार विद्वान लोगों को व्यस्त कर दिया जाता है। उन्होंने कहा कि सभी लोगों को समान रूप से रोजगार उपलब्ध करवाये जाये जिसके कि प्रत्येक व्यक्ति अपने लिए खाद्यान्न की व्यवस्था आसानी से कर सके। खाद्यान्न का वितरण किस प्रकार से हो पर विभिन्न संगठनों एवं प्रबुद्ध नागरिकों ने अपने-अपने सुझाव दिये
डॉ. भगवत सिंह तंवर ने जरूरतमंद लोगों के टिफिन व्यवस्था के माध्यम से भोजन मुहैया कराने का सुझाव दिया तो समाजषास्त्री डॉ. एच.एम कोठारी ने कहा कि वितरण टिफिन, नगद पैसा और खाद्य अलग-अलग रूप से योजना अन्तर्गत किया जा सकता है किन्तु मध्यस्ता कम हो। वस्तुओं का स्थानीय स्तर पर सुनियोजित वितरण व्यवस्था हो। समाजसेवी राधेष्याम चाष्टा ने खाद्यान्न में शुद्धता की बात करते हुए कहा कि खाद्यान्न से सभी प्राणियों को जीवन दान मिलता है इसकी शुद्धता बेहद संवेदनशील विषय है। खाद्यान्न की शुद्धता परखने के लिए ईमानदार अधिकारियों को ही जिम्मा देना चाहिए जिससे कि मिलावट करने वालो पर अंकुश लगेगा। स्पिकमैके से जेपी भटनागर ने कहा कि अपने घर से लगाकर षादी समारोह एवं विभिन्न पार्टियों में भोजन का एक कण भी व्यर्थ नही होने देना चाहिएं। इसी प्रकार प्रो. आर.एस मंत्री, अभय कुमार विराणी, हिन्दी व्याख्याता अमृत लाल चंगेरिया, वरिष्ठ नागरिक मंच से आर.सी डाड, कालिका ज्ञान केन्द्र निदेशक अखिलेश श्रीवास्तव, प्रयास निदेशक एवं समाजसेवी खेमराज चैधरी एवं युनीसेफ के चित्तौडगढ समन्वयक कुमार विक्रम आदि ने सुदृढ खाद्य व्यवस्था के लिए अपने-अपने सुझाव एवं विचार व्यक्त किये।
कार्यक्रम के अन्त में समाज सेवी डॉ. के. सी. शर्मा ने सरकार को पोषण की स्थिति सुधारने के लिए खाद्यान्न वितरण व्यवस्था के कई पहलुओं पर विस्तृत जानकारी देते हुए कहा कि प्रत्येक वास्तविक एवं पात्र व्यक्ति को खाद्यान्न सुरक्षा उपलब्ध करवानी चाहिए और कहा कि सरकार द्वारा संचालित विभिन्न खाद्यान्न योजनाओं को सामुदायिक निगरानी द्वारा गुणवतापूर्ण बेहतर किया जा सकता है।
इस संगोष्ठी में वरिष्ठ नागरिक मंच, नेहरू युवा केन्द्र, स्पिकमैके, प्रतिरोध संस्थान, अरावली जल एवं पर्यावरण संस्थान एवं प्रयास सहित कई स्वयंसेवी संगठनों के पदाधिकारियों सहित जिले के कई प्रबुद्ध वरिष्ठ विद्वानों एवं गणमान्य नागरिको ने भाग लिया।