समीक्ष्य पुस्तक- इक्कीसवीं सदी की चुनिंदा दहेज कथाएँ

 संपादक-डाॅ.दिनेश पाठक‘शशि’, पृष्ठ-144,मूल्य-190/
प्रकाशक-किताब घर, 24/4558 अंसारी रोड, दरियागंज दिल्ली-2, प्रथम संस्करण- सितम्बर-2010


विषेश रूप से दहेज विमर्श को केन्द्र में रखकर लिखी गई अनूठी कहानियों का श्रेष्ठ संकलन इक्कीसवीं सदी की चुनिंदा दहेज कथाएँ अपने शीर्शक को चरितार्थ करता हुआ कहानी संकलन है।
इसके संपादक डाॅ. दिनेश पाठक शशि स्वयं सुप्रसिध्द कथा-शिल्पी एवं श्रेष्ठ बाल साहित्य प्रणेता एवं अनेक कहानी, लघुकथा व व्यंग्य संकलनों के संपादक हैं।
प्रस्तुत संकलन में कुल सत्रह कहानियाँ संकलित हैं।विभिन्न ज्ञात-अज्ञात और अनेक स्थापित महिला-पुरुष कथाशिल्पियों की कहानियों को इस संकलन में स्थान दिया गया है।
इन कहानियों में आज के भारत का बिम्ब भी है और युगीन विशिष्ठ सामाजिक समस्या दहेज से जूझते हुए मध्य वर्गीय परिवारों का दर्द और दहेज के कुपरिणामों की भयावहता का सजीव चित्रण है।
संकलन की प्रथम कहानी ‘नई शुरूआत’ डाॅ. सरला अग्रवाल की लिखी हुई है जिसकें नायक ‘मानव’ द्वारा बिना दहेज विवाह करने का साहसिक चित्रण है और उसके आचरण से प्रभावित प्रेरित होकर उसकी बहन का विवाह भी बिना दहेज के होना दिखाकर कहानी की संदेशप्रदता प्रमाणित की गई है।
अलका पाठक की कहानी ‘बबली तुम कहाँ हो’ में दहेज लोभी सास की क्रूरता और बहू की असहायता का सजीव चित्रण है।
डाॅ.उमाशंकर दीक्षित की कहानी‘ वैधव्य नहीं बिकेगा’ इस संकलन की कहानियों में अपनी विशिष्टता रखती है जिसमें दहेज के दबाव को नकार कर एक उच्चादर्श का व्यावहारिक उदाहरण प्रस्तुत किया गया है।
बरखा की विदाई एक दीन परिवार की दहेज के अभाव से ग्रसित कन्या की कथा है तो ‘सांसों का तार’ दहेज भेड़ियों की क्रूरता का वीभत्स दस्तावेज है। अंतहीन घाटियों से दूर’ कहानी उच्चवर्गीय कृत्रिमता और नारी के प्रति वस्तु परक दृष्टिकोण तथा दहेज लोभी प्रवृति को रूपायित करती है।
मालती बसंत की कहानी ‘आप ऐसे नहीं हो’ दहेज के भय से कन्या के मन पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव और दहेज मुक्त विवाह के प्रतिफलन के रूप में उसके निराकरण की संदेशप्रदता की एक श्रेष्ठ कहानी है। इसी प्रकार ‘बिन दुल्हन बरात लौटी’ और ‘ भैया जी का आदर्श’ कहानियाँ दहेज प्रथा के मुँह पर तमाचा हैं। ‘शुभ कामनाओं का महल’ दहेज विमुक्त विवाह के पष्चात् दंपत्ति की आर्थिक समस्या को उभारकर कन्यापक्श की उदार समझ और बेटी के सुख-दुख में सहभागिता का संदेश देती है।‘निरर्थक’ कहानी दहेज लाने वाली बहू और दहेज न लाने वाली बहू के प्रति सास के भेद भाव पूर्ण दृष्टि को दर्शाती है।
‘अभिमन्यु की हत्या’ कहानी में ससुरालियों के लालच और पितृपक्श की बदले की भावना के बीच पिसती नारी की असहायता दिखाई गई है। ‘संकल्प’ और ‘दूसरा पहलू’ कहानियों में भी दहेज के लालच का कुपरिणाम और दहेज मुक्त विवाह के प्रति इच्छा शक्ति की सुखद स्थितियों का चित्रण है।
‘‘वो जल रही थी’’ कहानी समर्थ समाज में निर्मम दहेज हत्या की बोलती कहानी है। ‘बेटे की खुशी’ में वर्तमान पीढ़ी के विकासशील दहेज मुक्त सोच का चित्रण है ‘प्रष्न से परे’ कहानी में लेखक ने दहेज समस्या उठाकर उसका पर्यवसान आकस्मिक घटनाक्रम के चित्रण के साथ बड़े रोचक रूप में किया है।
कहानी संग्रह की सभी कहानियाँ कथानक, देशकाल व वातावरण, पात्र योजना, संवाद योजना चरित्र-चित्रण तथा उद्देष्य परकता के मानकों पर खरी उतरती हैं कई कहानियाँ इस दृष्टि से सराहनीय हैं कि उनमें युगीन परिवेश तथा सामाजिक यथार्थ और दहेज व्यथा का सजीव चित्रण है तथा कई कहानियों में दहेज समस्या के निराकरण और उसकी समाधान परक संदेश प्रदता विद्यमान है
इस संकलन के कहानीकारों तथा इन श्रेष्ठ कहानियों के संपादन हेतु संपादक डाॅ.दिनेश पाठक‘शशि’ को कोटिश बधाई।आशा है इस संकलन को हिन्दी जगत में निश्चित ही विषेश सम्मान मिलेगा।


समीक्शक- डाॅ.अनिल गहलौत
रीडर एवं शोधनिदेशक, के.आर.पी.जी.डिग्री काॅलेज, मथुरा

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