1)
मसरूफियत का दौर है, कोई किसी को याद नहीं करता ।
जज़्बात अच्छे होते हैं, पर कोई वक्त बर्बाद नहीं करता ।
सब हैं व्यस्त, क्या फर्क किसी को, कौन जीता कौन मरता ?
दर्द है अजीज़ ऐ "एहसास " ! एक जाता दूजा पास रखता ।
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2)
कदम आगे निकालते ही बहुत कुछ बदल सकता है
भरोसा अगर हो चिराग आन्धीयों में जल सकता है
आग़ाज ही माँ की दुँआ से जो शुरु किया करते हैं
ऐ एहसास ! उन्हे अंज़ाम से डर नही लग सकता है
-------------------------------"एहसास"
3)
क्यूँ चोंकते हो चन्द लम्हात पास बैठने दो
उडना है दूर आसमाँ की सैर की चाह में
एहसास को समझ चन्द साँस बटौर लेने दो
क्यूँ चौंकते हो चन्द लम्हात ही पास बैठने दो
_________________एहसास
4)
नेकी पे बढते कदमों को मंजिल की चाह नही होती,
राह में खिज़ाँ मिले या बहारे चमन परवाह नही होती
------------------------एह्सास
अनुराग त्रिवेदी .....एहसास