दिल से यूं एक बात निकली
आंखों से एक तकरार निकली
कहना चाह रहे थे कई दफा लेकिन,
होठों से कम्बख़त कम निकली.....
आसमान से एक लड़ी सी निकली
बूंदों से जैसे बरसात सी निकली
भीगना तो कई रोज तक था लेकिन,
कम्बख़त वो लड़ी आखिरी निकली.....
ख्वाबों की एक महफिल सी निकली
मंज़िल से भी एक दुआ सी निकली
अब तो जीना चाह रहे थे सुकून से लेकिन,
कम्बख़त यही आखिरी सांस निकली......
प्राजकता प्रभुणे