ऐ-दिले-शायर,जो ज़ख्म कमाये,उसीका जज़्बा है ;
यह उल्फ़त का फ़साना नहीं,अदावत प्यार की है,
टुटा जब दिल,तराना दिल ने अख्तियार किया है
मोहब्बत की क़सम शिक़ायत नहीं याद किया है
क्या बतायें अन्ज़ाम तेरे साथ मोहब्बत निभाने का;
फ़रेब था या कसमे वादे,जनम जनम साथ रहने का .
रूह तक को नहीं चैन,ज़ुल्म की हद हो गई,महेरबां ;
रातें अब उल्फ़त मे जगती,दिन इन्तज़ार मे न बख्शा ;
क्या समझाये दिल को,अक्स खुदका आईने मे नहीं देखते ;
आईना झुट नहीं बोलता-मेरी आँखों मे उन्ही का अक्स है,
आईना तोड़े भी तो,ज़रे-ज़रे मे उनकी तस्वीर का दीदार है;
ख़ुश्बू उनकी सासों मे बस गई,फूलों का अब क्या एतवार करें,
मैं परवाना,शमा का दीवाना, तेरे आग़ोश मे आने को बेताब
नसीहत काम न आये,हसरत है, तुम पर मर मिट जाने की ;
ऐ शमा,मुझे ख़ूब इल्लम है, की अदायें-ज़ालिम अख्तियार है;
लुभावनी चालों पर, दिल ऐ नादान,ने घाटे की तिज़ारत की है .
प्यार की देवी मना जिसे वह पत्थर दिल, हमसे खफ़ा हो बैठे
जज़्बा था मैन प्यार की इबादत की है, वह एहसान समझ बैठे
मायुसी के गम मे,दिमाग़ जब भी उनके ख़िलाफ़ जाता है ;
दिल बड़ा बेईमान,ज़ेहन ने पुरज़ोर उनकी ही हिमायत की है .
यह जज़्बात मेरे दिल मे सदा रहते,प्यार मुझे उनसे था ;
उनकी बेरुखी से ही मैंने शायरी करने की हिमाक़त की है .
सजन कुमार मुरारका