मेरी शायरी मे "उसका" अक्स....नजर आ ही जाता है
छिपाता हूँ जिसे वो ही शख्स.....नजर आ ही जाता है.......
बाज़ार में भीड़ और...हम सा तन्हा कोई नहीं
रौनको का क्या करूँ मेरा तेरे बिना कोई नही.......
वो इश्क की कहानी इसलिए है मीठी.......मीठी
बनी यूँ ये चाशनी कि दो दिल इसमे घुल गए....
विपुल तू आइने सा बेवफ़ा निकाला
जिसको मिला...... उसी सा निकला.
पहले पहले की मोहब्बतें......याद तो कर
जब बढ़ जाती थी धड़कने दीदार के साथ
चुप रहना शर्म-ओ-लिहाज में वो विपुल
और कोसना फिर ख़ुद को,इंतज़ार के साथ...
ये खयालो की दौलत है...बनी है लूट के ले जाने के लिए
बैंक के लॉकर के लिए नही...है ये विपुल जमाने के लिए.
आसमान में ही उसने...अपना पैग़ाम रख दिया
जुदाई में मेरे वास्ते....चाँद सरे शाम रख दिया...
लहरों ने तो भयानक.......ज़ोर डाल रखा है
मांझी ने कश्ती को.....मगर संभाल रखा है.
जरा से फिजिकल होने में बुराई क्या है विपुल
वो भी कोई इश्क है....जो दामन पाक चाहता है....
लाख तारे साथ थे.....जब उगा था आसमान में
अब डूब रहा है तो सूरज के,अब संग कोई नही..
कभी विपुल नये मौसमो में रो देना
कभी याद तुम पुरानी चाहते करना..
वहशते बढ़ती ही गई .............जुदाई के साथ
अब तो बोलते भी नही,इश्क के राही के साथ....
जाने कैसे निभा लेते है लोग...नफरते यहाँ पर
विपुल हमे तो रास ना आई मोहब्बतें यहाँ पर..
जुदाई के बाद भी हमे,.किसी का शिकार तो होना था
बहुत से यार थे हमारे साथ.....दिलदार के अलावा भी..
कभी नजर नजर में मचल गया......कभी लड़खड़ा के संभल गया
वो बन के लम्हा ऐतराज का....बिल्कुल पास से मेरे निकल गया
उस शहर में हुआ इश्क हमे.....दिलदार के साथ
चुनवा देते है जहाँ आशिकों को दीवार के साथ..
अच्छा नही लगा शुरू में......लगा यहाँ रहना नही अपने बस में
सोचते थे की भाग चले क्या,रहे हम...ओह नो......ओह यस में
अक्खड़पन समझा तो जाना,की प्यार छिपा इसकी नस नस में
क्या रहते जीवन रस के बिन, और रुक गए हम.....बनारस में...
की हरेक शय ने यहाँ मेरे साथ में......कमाल रखा है
दोस्त हो या खुदा,सब ने झूठे वादों संग टाल रखा है.
या तो पुरस्कार पाने वालों की...........lobby देख लिजिये
या मेरी व्यवस्थाओं से भिड़ने की... hobby देख लीजिये.
हमको जो आज ख्वाब में भी...तेरी दीद हो जाए
कसम से कहता हूँ मेरे चाँद...मेरी ईद हो जाए...
जब तक गम है बाकी
तब तक दम है बाकी
माना होश खो चुके हम
पर जाम कम है साकी...
यही है जहाँ में ......दास्तान-ए-आबादी
सांसो की जंजीर में बंधन की आजादी.
अपने पास हर-एक नाम की...कॉपी-किताब रखता है
वो ऐसा खुदा है जो बन्दगी का भी हिसाब रखता है..
जो कभी ख्वाब थे..फूलों के जैसे
चुभ रहे हैं अब वो शूलों के जैसे..
मयकशी में चिरागे-दिल
अंधेरों के नाम रख दिया
उसने जब नजर फेर ली
मैंने भी जाम रख दिया..
डाल पे रहते थे और कहते थे..."ऐ पेड़"..आयेंगे हम तारे लेकर
कट के गिरते ही......सबसे पहले आए वो....हाथों में आरे लेकर.
जो मर चुके हो बार बार......वो इक बार और से डरा नही करते
घायल रूह लेके घूमनेवाले.... जिस्म की चोट से डरा नही करते..
barkhaast hotaa nahi suspension kaa naatak kamaal ho jaataa hai
meraa gam sarkaaree naukar saa har baar fir bahaal ho jaataa hai....
इससे पहले के मर जाएँ या फिर............पागल हो जाएँ
ऐ दोस्त छिपा ले हमें,कि तेरी आँखों का काजल हो जाएँ...
बँटती है जब दरबार में...खैरात दोस्तों
लग जाती है शायरो की..जमात दोस्तों
कहते हैं हम तो दिल की....बात दोस्तों
दरबार में हमारी क्या....औकात दोस्तों..
हंस के बात कर ले और मुझको खरीद ले
वरना मेरी कीमत इतनी है कि तू खरीद नही सकता...
की हरेक शय ने यहाँ मेरे साथ में.......कमाल रखा है
दोस्त हो या खुदा,सभी ने झूठे वादों संग पाल रखा है........
एक सूरज डूबेगा.....तो हजारों और उग जायेंगे
शायर हमेशा जुल्म के खिलाफ आवाज़ उठायेंगे......
शायर है और देखना...शायरो सा इंसाफ कर के जायेंगे
मेरे क़ातिलो देख लेना...हम तुम्हें माफ कर के जायेंगे...
जाता हूँ पर देख लेना......जब आयेंगी तुम पे तन्हाईयाँ
तब तुम्हें हर ओर से...घेर लेंगी............मेरी परछाईयाँ...
देखिये उनके साथ में कैसे कैसे
हो जाते हैं कि यहाँ पर ..."कमाल"...ऐसे ही
मै फँस गया हूँ तो मेरी किस्मत है
वर्ना उन्ने तो फेंका था...."जाल".......ऐसे ही....
अपने आँसुओं से ही.....सब दाग दिल के धो लिए
इक पेड़ पे तेरा नाम लिखा,और लिपट के रो लिए.....
की एक तो तेरी ज़ुल्फ ये काली भी कयामत है
और उसपे चेहरे की....ये लाली भी कयामत है...
कब सुनते है वो मेरी...हाँ कभी कभी फँस के सुनते है
तब भी मै रो के कहता हूँ.....और वो हंस के सुनते हैं...
पहले तो जान के पत्थर,ज़हर को पिलाया तूने
फिर बोल के भोले-शंकर...बेवकूफ़ बनाया तूने.
इस शहर में हरेक जगह...बाज़ार है दोस्तों
मुड़ते ही तुम्हारी पीठ पे,इश्तेहार है दोस्तों
वक़्क्त आने पे हम दिल खोल के दिखा देंगे
वेलेंटाइन डे पे देखना,कि हमे प्यार है दोस्तों
हाये क्यों उम्र लगी,जाने से जाते जाते
काश...तेरी जुदाई के साथ ही मर जाते...
मज़बूरियाँ थी उनकी...और जुदा हम हुए
तब भी कहते है वो....कि बेवफ़ा हम हुए...
रहा नही गया जब सहते सहते
शायर हो गए तब कहते कहते...
ज़िन्दगी का ऐत्बार क्या
फिर आई तो बहार क्या...
ऐसी भी इक राह् हो...जो तुझ तलक़ हो
जहाँ भी निगाहे जाएँ बस तेरी झलक हो
अपनी आंखों की तरह कैद कर लीजिये
कोई हो जो संग मेरे....तो तेरी पलक हो.
कुछ तो हैरानी है,और कुछ परेशानी है
खामोश निगाहें हैं या बोलती कहानी है.......
कितना आसाँ था........तेरी यादों में जल जाना
लेकिन ज़िन्दगी हमने गुज़ारी सुलगते सुलगते....
मैंने माँगी थी किस्मत....तो कलम और डायरी दे दी
खुदा ने मेरे सजदों के,बदले में मुझे.......शायरी दे दी.....
मैंने माँगा जो गुड़लक...तो पेन और डायरी दे दी
खुदा ने मेरी प्रेयर्स के बदले में,मुझे शायरी दे दी.....
जो साथ "थे" वो जुदा हो गए
जो साथ "हैं" वो खुदा हो गए
अब मत पूछियेगा....मुझसे
के दोस्त कहाँ.."हवा" हो गए.
अपने दिल को,यूँ वीरान बना डाला
गाड़ के यादें...कब्रिस्तान बना डाला..
नरमो नाज़ुक हाथ में जैसे एक छाला है
की मेरा जिक्र भी यूँ उसे रुलाने वाला है....
बदल जाते हैं होंठों तक मिजाज आते आते
कि जाने अब कैसी मिले शराब आते आते......
ऐसे सुलगते रहने से तो.......बेहतर था मर जाना
तू जानता नही मुझ पे,क्या बीती है यूँ रोशन होके......
ज़िंदगी में तेरी याद की परछाइयाँ
शाम होते ही फिर साथ तन्हाईयाँ.......
नशे-पते की हालत में तकिये से चिपट के सो लिए
इक पेड़ पे लिखा नाम तेरा..और लिपट के रो लिए.....
आज इस शहर में....मेरा पता कुछ भी नही
और हाँ,इस सब में तेरी खता कुछ भी नही...
हवा बनके पानी में..........फना हो जाइये
कुछ बुलबुले....लेकिन फिर भी रह जायेंगे...
मोहब्बत के सौदागरों को वफ़ा के बदले
इश्क की आजकल गुंजाइश नही लगती...
अतीत की बंजर ज़मीन में,मै यादें गाड़ आया था
और आज हम तेरी उन्ही यादों की खेती करते है....
इंतज़ार में मेरे.....जब तुम खड़ी थी
पैरों में मेरे तब........बेडि़या पड़ी थी....
मेरी खामोशी से परेशानी क्यूँ है...........कहते है कि खामोशी ख़ुद
ग़ज़ल होती है
ज़िन्दगी जब भी लाती है हंसी मोड़ पे...उन लम्हों पे अल्लाह की फज़ल
होती है.
सितारों के संग खो जाते है,चलिए अब हम सो जाते हैं
मूंदिये आँख इस शहर से, यहाँ अच्छे अच्छे रो जाते है....
मेरे हाथ की लकीरें...दुश्मनी मुझसे निभाती है
दुआए लगती नही.....बददुआए चिपक जाती है...
देखिये इस शहर में रोज़ रोज़, नए नए मकान जुड़ जाते है
अपना धंधा नही चलता, तो लोग किसी दुकान जुड़ जाते हैं..
के क्यों दूर् कभी वो जाए....और चलती भी आए है मुझ तक
यूँ हसीना एक मुझे खीचे...और खिचती भी जाए है मुझ तक......
मेरे खामोश रहने पे,क्यों तुझे निराशा होती है
खामोशी की भी तो...एक अपनी भाषा होती है.....
तू छत पे आए तो पूरी..सबकी मुरीद हो जाए
कही करवाचौथ हो जाए और कही ईद हा जाए.....
तरानो में...आग छिपा रखी थी
खून की बरसात छिपा रखी थी.....
तोड़ के फिर फिर दिल मेरा, इक़्ररार के कारोबार में बैठे है
हींग लगे ना फिटकरी अजी वो ...वायदा-बाज़ार में बैठे है....
हम तो तेरे दिख जाने से भी........तर हो जाते है
उफ.....कि बीमारे इश्क के हाल बेहतर हो जाते है
अदाओं पे आये-हाये आये-हाये...हम मर जाते हैं
तू चाहे समझती रहे.....कि खामोश गुजर जाते है....
तेरी नाराज निगाहों से लगती है... कि देखो दुखता है ना
ज़िन्दगी काँटे सा बन जाती है.......कि देखो चुभता है ना....
हम छोड़ चले शहर तेरा... लेके आँसू और अपना गम
मेरी दीवानगी और तेरी रुस्वाइया,रखेंगे याद हमेशा हम.
अगर तू चाहे तो सबको सच मान,के उसपे भी मनाही कोई नही
या इन आंखों में देख बेगुनाही.........और मेरी सफाई कोई नही......
उफ इस क़दर रुप की...ना शम्मा जलाइये
इस परवाने के भी अंजाम पे तरस खाइये.....
आज तक निगेह्बानी है.....पहरे है
की पुराने ज़ख्म इस क़दर गहरे है........
तूफानों में राह् से.. मुझे भटका गया कोई
मोहब्बत का इज़हार करके रुला गया कोई............
तेरे बाद कब किसी से उम्मीदें वफ़ा करते है
मुर्दे बस सिर्फ़......... एक बार मरा करते हैं..............
बिना जज़बातो अब का प्यार रह गया है
बस वैलेंटाइन डे का.. इज़हार रह गया है
मोहब्बत की दुकान पे माल ही नही है
गली गली खूब मगर इश्तेहार रह गया है...
देख लो यहाँ मुझसा कोई जिद्दी नही है
जलील हो के भी मेरी बेइज्जती नही है....
मंज़िल है सामने..पर रास्ता नही है
उसका मुझसे कोई... वास्ता नही है........
एक ही नाम है मेरे अफसाने में
फिर भी चर्चा है सारे जमाने में.....
के सोच समझ भी लीजिये अह्सानो के पीछॆ
जाने क्या मन्शा निकले... मेहरबानो के पीछे.......
गमे दिल की मेरे
कि ये दास्तां निकली
कोलाहल बहुत था
बस्ती वीरां निकली......
इस शहर में हुकूमत ही उसकी है
आख़िर कैसे गिरफ्तार नही होता मै.....????..
आसमान के बादलों का किनारा नही होता
समंदरो में कोई भी हमारा नही होता
ये ही तो इन आते जाते सालों के सच है....
कुछ हमारा नही होता,कुछ तुम्हारा नही होता....
वो हसीन हाँ मुझपे,.. भारी पड़ा
पल दो पल नही, उमर सारी पड़ा
हकीमो ने इलाज मना कर दिया
इस इश्क की जो मै बीमारी पड़ा....
दरिया हू तो भी.... दुखता है मुझे
कतरा कतरा बहता तेरी आँख का......
पहले तो पूछते है कि कैसे लगते है हम
बताता हू, तो कहते है कि नज़रे खराब है.....
जिंदा अगर मै होता,तो मेरी मौत होती
तेरी दुश्मनी की तब कोई औकात होती......
चार लफ्ज़ो की शायरी में जो आसमानो का कमाल दे
वो शायर हूँ जो सुइ के छेद से......हाथी को निकाल दे.......
अपन दो बादशाहो के... सब मोहरे पिट चुके है
मोहब्बत की शतरंज में अब नई बाजी हो जाए......
अन्धेरे को कोसने से बेहतर दिल की चिंगारी को सुलगाते
आने वाले मुसाफिरो के लिए ही कोई शम्मा जला के जाते....
झटक झटक के तेरा यूँ,ज़ुल्फें सुखाना अच्छा है
पटक पटक के दिल को मेरे मुस्कुराना अच्छा है....
लाई साँस तो आए, मौत ले चली चले
आग छोड़ जाते है, के शम्मा जली चले.....
झटक झटक के तेरा यूँ,ज़ुल्फें सुखाना अच्छा है
पटक पटक के दिल को मेरे मुस्कुराना अच्छा है......
इश्क में क्या ना देखा,..देखा वो भी अब पराया था
कि मेरे खूने जिगर को जिसने,आँखों से बहाया था......
लाई साँस तो आए, मौत ले चली चले
आग छोड़ जाते है, के शम्मा जली चले.......
लगता मुझको अब.....तेरा ही हर साया है
कोहरा नही..ये मेरी उम्मीद का सरमाया है......
आंखों में काजल लगाने लगा है
उसपे भी मेरा रंग आने लगा है.......
जब शायर खुदा को,इक अच्छा इनसान देता है
तब खुदा शायर को, ख़ुद अपनी ज़ुबान देता है.......
सर्दियों की धूप हो,और तेरा रुप हो
गुनगुनी चाहतों का मज़ा लेने दीजिये
तेरे दीदार से मुझ में जान आई है
अब इन राहतों का मज़ा लेने दीजिये.......
बला की खामोशी....... मैं ओढ़ें था मगर
चुगलखोर निकली ये मेरी नजर
महफिल में नजरें छुपाता मै फिरता रहा
मुस्कुराता रहा वो मुझे देख कर................
लड़ाई ऐसे कीजिये......जैसे दाल में तड़का होता है
इश्क में हर कोई यहाँ बेवजह हीतो भड़का होता है.....
मरने का जश्न हुआ ही नही वरना सनम
मुर्दा ही सही....पर हम नाचते गाते जाते....
हाये तू मुझको.. ये क्या दे गया
तलबगारे मौत को.. दवा दे गया
कि इश्क की आग पे रहा बेमेहर
बूझते अब शोलों को हवा दे गया.....
कि जाके मयखाने में...........ये मेरा पैग़ाम रखना
गैरमौजूदगी में भी............एक खाली जाम रखना
मयकशी में मेरे.वास्ते.............ये एहतराम रखना
यानि कभी भी आ सकता हूँ....तुम इंतेज़ाम रखना......
कयामत हम पे गुज़री..यहाँ आते आते
और तुम रह गए ......कहाँ आते आते...........
कि कयामत हम पे गुज़री...यहाँ आते आते
हाये.....और तुम रह गए कहाँ.....आते आते......
रहता है मुझको तेरा ही...खयाल आते जाते
कि कभी तू भी पूछ ले, मेरा हाल आते जाते.......
ऊपर वाले के द़फ्तर में किसकी अर्जी चले
ना अपनी मर्जी आए ना अपनी मर्जी चले.......
जगमग चमकते तारे ने...ये बात छिपाई होती है
कि आसमान की बुलंदी पे केवल तन्हाई होती है......
मै भी जानता हूँ रूठ कर........ तेरा भी जी जला है
सच बताऊं तो मुझे भी.....कि इसका बहुत गिला है
कभी तो सोच रोज़ रोज़ इन "अहम" की लड़ाइयो से
क्या तो तुझे मिला है....... और क्या मुझे मिला है.......
मंझो से भरे आसमानो में घायल हर परिन्दा होता है
अन्धी दौड़ों में पड़ के घायल यहाँ हर बाशिंदा होता है
अपने अपने हुनर है सबके लेकिन कोई नही जानता
भीड़ से जो हट के चले ऐसा कोई एक चुनिंदा होता है....
इश्क का गर सच है कुछ.......तो ये मेरी बेताबी है
रही तेरी सब्र की बात......तो वो फिजूल किताबी है
दुनिया का हरेक आशिक बस यही कहता मिलता है
आख़िर आ भी जाइए.......मिलने में क्या खराबी है...........
मेरा इश्क एक हादसा था यारों..लोग फिर भी मुझे जल के देखते है
सुनते हैं कि वो हसीन कभी मेरा था...तो हाथों को मल के देखते है.
जैसे किसी से जुनून में...खून हो गया
कि वैसे ही मेरे खून में जुनून हो गया.......
ना ज़िन्दगी आती है...ना मौत आती है
जानेमन....बस तू ही तू....याद आती है.......
यादों की कलम में आज स्याही नही है
यानी हम तो है मगर... तन्हाई नही है........
हवाओं में घुल कर.. बिखर जाने के लिए
शायर तो होते ही है.. सारे ज़माने के लिए.....
देख ली सबकी हक़ीक़त.....देख लिए सब चोंचले
अगर कोई सच्चा है तो.....मेरी शराब की बोतलें...........
टूटना ही तो मेरी किस्मत है.....मैं हर जगह टूटा
साथ कभी इसका छूटा..... साथ कभी उसका छूटा.......
वो हसीन भी कोई हसीन है......जो पागल ना बना के रख डाले
वो शायर भी कोई शायर है.......जो घायल ना बना के रख डाले......
जो दरिया है....उसे बहने दे.....वरना तोड़ डालेगा तुझे
के लिखने दे और कहने दे......वरना मोड़ डालेगा तुझे......
जुदाई की ऐसी सर्दी है
यादों को जलाया करते है
यूँ खूने जिगर से हम अपने
हाथों को तपाया करते है .....
हरेक के साथ..... खुदा देखा
बस अपने साथ.. जुदा देखा.....
वो कहते है...बस एक नौकरी "पकड़" लो
साथ के साथ....लिखते भी रहो.....
हम कहते है अपनी नौकरी...... हमे दे दो
और कुछ भी लिख के दिखा दो........
भीख माँगी,रोये भी, गिड़गिड़ाए भी
पर ज़िन्दगी ने नहीं रहम दिखाया
मैंने कि ताल ठोक फिर ताव में आकर
कि अपना असली वाला रंग दिखाया.........
फितरत में ही मेरी, गर्मी है बड़ी
चाँद से भी नजरें.. सेकते है हम......
जो इश्क का खेल.. खूनी था
तो मै भी आशिक जुनूनी था.....
ये कौन से चाँद की चाँदनी में............आज की रात नहाई है
बता दूँ कौन है महफिल में...जिससे ये ग़ज़ल झिलमिलाई है.....
के काश आज के रात मैं............फना हो जाऊँ
कि तेरे ख्वाब की अब... कभी भी सुबह ना हो.........
सुनते है कविता की और शायरी की "धार" बहुत बुरी होती है......"सोने"
भी नही देती
सुनते है कवियों की और शायरो की "मार" बहुत बुरी होती है......"रोने"
भी नही देती......
बाइगॉड अजीब है इश्क की रवायते
कि हम तो प्यार लुटाये.. वो करे किफायते
जो नजरें मिलाय तो कहते है बेशरम
नजरें हटाएँ... फिर तो.. और भी शिकायते.......
मुझ से मेरे दिल की आग की ना पूछिये
इससे जो मै चाहूं तो... सूरज को फूँक दूँ.....
सब कहते हैं कि स्वर्ग के बगल में है उसकी छत
उधर के पतंगबाज़ भी उसे ..देखने के लिए बैठे है
एक हम ही नही है.... उस हुस्न के इनायते नजर
यहाँ तो देवता भी लाइने लगा लगा करके बैठे है.......
मिल जायेगा आसमान.....आप आसमान में देखिये तो सही
आप अपने आप को झांक के.... गिरेबान में देखिये तो सही
जान दे सकते है बाइगॉड.... हम जमाने भर के सताये लोग
लेकिन आप कोई खूबी भी,इस भी इंसान में देखिये तो सही.......
आप दिल बड़ा करके.. फिर इस जहान को देखिये
कभी बच्चो की नजरों से इस आसमान को देखिये
कितनी रंगीन है यहाँ.. सबके ख्वाबों की पतंग
अपना नज़रिया ठीक करके यहाँ इंसान को देखिये.....
पहले तो नजरों से टल्ली कर दिया
अब बहक रहा हू..... तो कहते है..
"के चल हट"..."अभी तू नशे में हूँ" .......
ख़ुद अपने माल में भी क्या........कभी खराबी कहते है
फिर नजरों से पिलाने वाले क्यो.. मुझे शराबी कहते है.........
मेरी चाहतों के सौदे में........मोलभाव मत करिये
इसमे जरा भी, कुछ भी कम करने की..."गुंजाइश".. नही है
के आपका दिल चाहिये.. मुझे अपने दिल के बदले
इस से कम घर में नही पड़ता, ..... कोई "गुंजाइश" नही है........
कैसे किसी के तजुर्बे का ...मै फायदा उठाऊ
जो मेरे संग वो होता है, जो किसी के संग हुआ नही होता....
इक चाँद तो है मेरे पास मगर,वो मुझसे झगड़ा करता है
छोटी छोटी बातों पे रोजाना ही, वो मुझसे अकड़ा करता है.......
वो मेरा खूने-जिगर हो करके भी,मेरा दिलबर नही है
यानी मेरे अपने मोहल्ले में ही,मेरा कोई घर नही है......
मै छिपाता तो हूँ मगर,तुझे ये सभी शख्स देख ही लेते है
मै क्या करूँ मेरी शायरी में,लोग तेरा अक्स देख ही लेते है......
हम उसको खुदा का वास्ता देते थे......
...........जो ख़ुद को खुदा समझता था....
इश्क का जुल्म देखिये....कि अब मुझे पतंग बना के उड़ाते है
कभी खींच,कभी तान,कभी ढील..कभी ठुमकी.....मेरी लगाते हैं......
बातें तो ऐसे खर्चते है, जैसे फ्री में आती हो
दिल की बात आए तो....लॉकर में बताते है......
इश्क का ज़ुलम देखिये....कि अब मुझे.. पतंग बना के उड़ाते है
कभी खींच,कभी तान,कभी ढील..कभी ठुमकी.......मेरी लगाते हैं
और तो और,किसी से भिडना होता है,तबतो इंतेहा हो जाती है
मुझको उसमें फँसा कर के... आये-हाये पेचे भी.... मेरे लडा़ते है
.......
गुमनामी नही,खुदा की मेहरबानी है
ओस की बूँद हूँ.,चमकते ही फट जाऊंगा....
मैं अपनी तरह का हूँ.....किसी कतार में नही हूँ
"नम्बर एक" बनने की........मझधार में नही हूँ...
मैं कालिख ही सही...... मगर.......
आँखों में भी तो कुछ लगाती है आप...
तू मेरे हिस्से की शराब ले ले
और अपने हिस्से का चैन दे दे.......
मुर्दा तो मैं अब भी.....नही हूँ मगर....
तू संग होता.....तो और ही बात होती.......