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रचानाएँ आमंत्रित
Chitra Kumar Gupta
यूँ गरीबोँ को नजरअँदाज नहीँ किया करते हैँ.
लोग फटे कपङोँ से भी बर्तन खरीद लेते हैँ ।
बुजुर्गोँ की नसीहत असर नहीँ करती है,
मिटटी के खिलौनोँ से अब
बच्चे कहाँ खेलते हैँ ।
न कोई शख्स बेगाना है न शहर अजनबी,
प्यार से मिलोगे तो दुश्मन भी दोस्त हो जायेँगे ।
थोङा पाकर भी मुतमईन हो जाता हूँ,
छोटा सा तालाब हूँ चन्द बूँदोँ मेँ भर जाता हूँ ।
साफगोई के नाम पर तीर मत चला,
किसी के ज़ज्बातोँ का कत्ल अच्छा नहीँ होता ।
हर रोज़ कईबार मौत के घाट उतर जाता है,
बुजदिल तो ज़िन्दा होकर भी मुर्दा समान है ।
मतलबपरस्ती, मौकापरस्ती तो खूबियोँ मेँ शुमार हैँ,
लोग शरीफोँ को बेवकूफ कहा करते हैँ ।
किसी के जख्मोँ को, तो तू भर नहीँ सकता,
हमदर्दी के दो बोलोँ का मरहम तो लगा दे,
आज के बच्चे रफ्तार के सौदागर हैँ,
जान हथेली पर लेके चला करते हैँ ।
सुबह होते ही जानिबे मँजिल चला काफिला,
हम छूट गये पीछे पलक झपकाने मेँ
Chitra Kumar Gupta
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