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ज्योतिप्रकाश सिंह

 

----------//.......बेवफा ...//---------------
तुझे देखने के फ़िराक में,
जाने कितनी बार मै गिर गया,
जो नकाब तूने ओढा था,
सुना है अब वो बिक गया ,//

 

 

...राजनीती............
ऐ रुक, कहा है जा रहा ,
तुझे रास्ता पता नहीं,
वो मोहल्ला-२, कातिलो का है,
वहा क़त्ल भी सजा नहीं //
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लाख चिल्लाये सूरज की प्यास नहीं है,
नदिया सुखाती है उसको एहसास नहीं है,
धुप भी न बच पाई भीगने से 'ज्योति'
उसके सामने ही कई बार बरसात हुई है/

 

 

 

[1]
,ये शोर कैसा उठ रहा,,
ये देश कैसे लुट रहा ,,
ग़र तुमने कुछ किया नहीं,,
तो गुनाहगार क्या मज़ार है,,
..............................................
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
,[2],,,इस चिराग को किसने बुझाया ,
ये चांदनी किसने बिछाई ,,
मै भी चांदनी पसंद हु ,,
पर चिराग जलनी चाहिए ,,
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
[3],,खुद को मै हु ढूढता,
मै खुद का गुनाहगार हु .
कैसे मै होऊ रूबरू ,,,
पैदल हु ,लाचार हु .,,

 

 

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