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शायरी — मधु वीणा


शुक्र है मिल गई निजात मुझे इश्क से
नहीं तो न जाने कितनी बार
दफ़न होना पड़ता मरना से पहले
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मेरे मेहरबान, खुदा के लिए
मुझसे कोई वादा न मांग
क्यों वादा करवाकर मुझसे
मेरी मुहब्बत पर शक करता है
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बस तू ही तू है, और जहाँ में रखा है क्या !
तू मिले तो सकूं आये, बाकी सबसे मेरा वास्ता है क्या !
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हम खुदा की नहीं
खुदा के बन्दों की इबादत करते हैं
हर गली-कूंचे से मुस्कुराकर गुजरते हैं
लोग मस्जिद मज़ार पर सर झुकाते होगे
हम हर किसीको को सलाम करते चलते हैं

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