मुझे इक तेरा साथ चाहिये और कुछ भी नहीं......
ग़र तू होगा तो कमी हो ही नहीं सकती मेरे.....
मेरे घर की भी फिर सूरत कुछ और होती,
पा लेता सब तो भी जरुरत कुछ और होती,
ज़िस्म अगर मेरी चाहत न बनता पागल,
तो यक़ीनन ये मुहब्बत कुछ और होती,
गली का हर एक नुक्कड़ चमकदार हो जाता,
मेरा सारा बंजर गाँव फसलदार हो जाता,
एक तो मैं पागल और उपर से तेरी ख्वाईश,
शायर न बनता तो तहसीलदार हो गया होता
जर्द पत्ते गिरने को थे और वाकया वो जल्दबाजी का......
नये हाथो में अक्सर पुराने कप टूट जाते है,,,,................
इश्क तो करते है मगर मेरी तरफदारी नही करते,
बोलते मीठा है, पर बात को गुलकारी नही करते,
वो जो लहजा कंही दिल को छू जाता था पागल,
उस अदा पे शायद उतनी मीनाकारी नही करते,
खैर कुछ ने तो कह दी बात हंसने की ओट में लेकिन,
वो कंहा जाये गम जिनका रोकर भी हल्का नही होता,
ज़माना समझ गया ये भी अच्छा हुआ,
हमें बेवफा कहा चलो अच्छा फैसला हुआ.,,,,,,,,,,
चूमकर अच्छा करता है वो जख्मो को,
देखो दवा का ये भी कोई तरीका हुआ,............
वो पागल है बिलकुल, ख्वाबो के घर बनती है ,
हंसती है ऐसे कि दिलो को पत्थर बनाती है ,
ये अदा भी शामिल है उसके हुनर में दोस्तों,
बस छूकर पानी के दानो को शक्कर बनती है
एक ख़ुशी के लिए गम का सामान मत बेच,
ये ख़ुशी ही जहाँ है पागल ये जहान मत बेच,
सहारा कौन देगा इन बेरहम कबीलों में तुम्हे,
आयेगा लौटकर तू ये पुराना मकान मत बेच,
आप तो डरोगे ही क्यों बारिश के तेज़ तुफानो से,
माट्टी के घरोंदे तो सिर्फ हम ही ने बनाये है
ना हंसता है ना बोलता है न जाने उसे क्या हुआ है
लगता है शायद किसी भूतनी ने जकड लिया है
कितनी मिन्नतें की, कितने दर खटखटाये कुछ न मिला,
पर आज चेक-अप से पता चला की जनाब को मलेरिया हुआ है....
ऐ मंजिल चूमना है तो चुमले मेरे कदमो को आज ...
कंहा फिरोगी कल को हाथ में मेरा पता लिए.....
उनकी गम छुपाने की अदा भी देखो पागल .....
वो अपने घर की दीवारे और ऊँची करवा रहे है
phool khuushbuu or gulzar ke rishte jaise hai.
mere maa-baap ke hr kaam fariste jaise hai.
na jane kya kya hai pehlu me smete huve.
unka dil masum kisi bcche ke bste jaisa hai.
Ab to kisi tarah khud ko samhala jaye.
Mumkin nhi h unko dil se nikala jaye.
koi bhuul gya agr to pyar me h maafii.
Kyo naam leke uska jag me uchhala jaye.
jo krne ho zulm krle lekin a zindgi.
yaad rkhna ki baari meri bhi aayegi
Na hindi, na urdu, na angreji kaam aai.
per ka kanta nikalne me suee kaam aai.
kb tk ujale ki khatir jugnuo ka peechha krta.
aakhir wahi purana charag, tel, or ruee kaam aai.
sukun tabah karne walo ko hathiyaar koun bechta hai.
rishte majboor krte hai wrna ghrbar koun bechta hai.
puo fat-te hi bdha deta hai udasi chehre ki pagal.
pata kro ki shahar me ye akhbar koun bechta hai.
a manjiil chumna ho to chumle mere kadmo ka aaj......
kaha firogi kal ko hath me mera pataa liye.......
Abhi tk dekhne ka andaj juda h .
abhi tk humko apna nhi smjha
Na badal apne kaanto bhre rste a dost pagal ......
dekhna manjil chalkr ak din esi rste se aayegi.
Suna h hr baat pr wo sher kehti h.
facebook pe dekha ab ajmer rehti h.
muhbbt h ki na h ye main nhi kehta.
wo apne takiya kalam me badmer kehti h.