गम-ए-दौंरा में हर लम्हा वीरान लगता है,
आईने में अब तो अपना अक्श भी अन्जान लगता है...
जहाँ होती थी कभी प्यार और खुशियों की बारिश,
'राज' वो घर,अब घर नहीँ, श्मशान लगता है......
इस शहर कि आबो हवा, कुछ इस कदर बदली कि.......
मुर्दे बोलने लगे, और जिन्दों को चुप करा दिया गया........