तौबा किया कि हुश्न वालों पर न नज़र डालेंगे
हुज़ूर बच के निकल जाना बे-मौत मार डालेंगे
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इल्म बाँटो सबमें, तुम कुछ सिखलाओ तो सही
अंधेरे दूर होंगे तुम इक दिया जलाओ तो सही
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ग़म नहीं इसका, कि हम अकेले रहे "साँझ"
हर रात नींद आयी, तुझे याद करने के बाद
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आरज़ुयें मेरी ज़िदगी में कैसे कैसे हालात लायी
कितने आरज़ू में दिल जल गया, कुछ आँसुओं मे बह गयी
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दिल में रहिये, मेरी जान-ए-जाँ होकर
ज़िंदा न बचेंगे, मेरी दुश्मन-ए-जाँ होकर
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जिंदगी कट गई, ढ़ूँढते कितने मुकाम,
अब जाके रास आया अपना आराम !
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शायद आज कोई नयी बात हो जाये
काश तुमसे फिर मुलाकात हो जाये
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कश्ती को किनारा मिले या डूब जाये आज
हमारी मंज़िल है मज़धार तो डूबना बेहतर
अकेले रहना है तो रह लेंगे, कुछ शर्तों पर,
"साँझ" कभी परेशान किसी की अदा न करे !
आज वो रूठ गये हम से !
अच्छा लगा नहीं कसम से !!
माना हमसे ग़लतियाँ हुइँ !
इतनी क्या बेरूखी सनम से !!
तू मेरे साथ रहे न रहे, तेरी हर याद रहेगी !
तेरी यादों से ही मेरी रातें आबाद रहेगी !!
तेरे हुश्न के उन्माद में डूबे ए जमाने वाले !
तेरी एक दीद के हैं मुश्ताक ए जमाने वाले !!
मुश्ताक - लालायित
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अपने आशिक़ के जनाजे से गले लग के तो रो लो !
कौन जाने फिर तेरे आँसू उसकी कब्र भिगो ना पाएँ !!
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तुझे किसने कहा मेरी जिंदगी तेरे बग़ैर बसर नहीं होती !
ग़म में रहता तो तुझे मेरी अय्याशियों की ख़बर नहीं होती !!
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नज़रें नीची किए वो फूलों सी हया दिखाते हैं !
उठा लिए तो कड़कती बिजली सी चमकाते हैं !!
अपनी पलकों पर सजा रखतें हैं कुदरत का तिलस्म !
हर दिलों में अपने प्यार की खुशबू बिखराते हैं !!
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पहली उडान में हवाएँ उड़ा ले आईं जाने कहाँ !
अब तो आसमाँ को देखने से ही कतराता हूँ मैं !!
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चोट दे दे के मज़ा लेते हैं !
रूठ जाऊँ तो मना लेते हैं !!
एक जख़्म ठीक से भरता नहीं !
दूसरा दे के फिर से दुखा देते हैं !!
जीतेजी ना हाल लिया, अर्थी पे रोने आए हैं !
कैसे कैसे लोग यहाँ मरने पे भी सताने आए हैं !!
चोट पे चोट देकर भी जिनको अब तक चैन नहीं !
ख़ुद ख़र्राटों से उठकर, "साँझ" आख़िरी नींद चुराने आए हैं !!
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उड़ा है मेरे घर के ऊपर से एक बादल आवारा !
लगता है ए भी है इसी गर्मी ए हालात का मारा !!
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अपनी मौंजों में लहरें जब किनारों को छूतीं है !
साहिल उसकी जलन में दम तोड़ देता है !!
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मुझे अपनी मुहव्बत के तराने तुझको सुनाने और भी होंगे !!
तू ज़रा घर से निकल तो सही तेरे हम जैसे दीवाने और भी होंगे !!
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उसके नाम से, मेरा नाम का, कोई झूठा फसाना ही सही !
उसकी इक निगाह पाने का कोई ओछा बहाना ही सही !!
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तेरे ईश्क में बीमार को कुछ दवाएँ दे जा !
छोड़कर जा रहा तो मरने की ही दुवाएँ दे जा !!
अब इन पुरानी हवाओं में साँस फूलती है मेरी !
फूँक मार दे "साँझ" थोड़ी ताज़ी हवाएँ दे जा !!
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ख़ुदा तेरी एक नज़र ही बहुत है !
मैं क्या तुझसे कमाई माँगूं !!
तुझसे मुहव्बत में जुदाई माँगूं !
कि मेरे दिल से उसकी रिहाई माँगूं !!
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इतने दिनों के बाद पूछते हैं मेरे दिल का हाल हँसकर !
मैने भी कह दिया एक वेवफा छोड़ गई डसकर !!
रात चढ़ी आई सुलाने मुझको !
उनकी याद आई जगाने मुझको !!
मैं इसी पेशोपेश में था सोयूँ या जागूँ !
नींद आई दिखाने सपने सुहाने मुझको !!
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दुनियाँ वालों को कोई मेरी नज़र दे दे !
वो भी देखें उन्हें मेरी नज़र से !!
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वक्त बेवक्त पे टूट जाए ओ ऊसूल नहीं !
अपने ईमान से समझौता कुबूल नहीं !!
दे सको तो हर किसी से ख़ुशियाँ बाँटो !
ख़ुदा के घर में कोई नेकी का काम फिज़ूल नहीं !!
मैंने आपकी नज़र हमारी क्या एक नज़र कर दी !
आपने तो हमारी उस नज़र को सबकी नज़र कर दी !
आईना सबको सिर्फ सच दिखाता है !
पर कहाँ कब किसको नज़र आता है !!
सब तो देखते हैं इसको आँखे बंद करके !
वरना सबका ज़मीर पढ़के ही वो शर्माता है !!
किसे ख़बर कि कौन कल की याद हो जाए !
कुछ तुम सुनाओ, कुछ मेरी ग़ज़ल पर दाद हो जाए !!
महफिल में ख़ामोशी मातम सी लगती है !
छेड़ो शेर ओ सुखन ए रात आबाद हो जाए !!
उनकी हरेक ख़्वाहिश को पूरा करने में जान मुँह को आती है !
बीबियाँ फिर भी श्रीमान की कोशिश को आधा ही बताती हैं !!
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हाले दिल उनको सुनाते भी ना बना !
दिल को अपने समझाते भी ना बना !!
आँखें ही बन गईं मेरे दिल का आईना !
महफिल में यह राज़ छुपाते भी ना बना !!
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बात करते हो ऐसी, ऐ बात बड़ी छोटी है ।
आज की हमारी मुलाकात की ए रात, बड़ी छोटी है ॥
कहाँ तक जाओगे, मुझसे ख़फा होकर तुम ।
लौटकर फिर यहीं आवोगे, ए दुनिया बड़ी छोटी है ॥
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घृणा की आग में एक बस्ती को जलते देखा है ।
एक नन्हे अनाथ को अपनी माँ की लाश पर बिलखते देखा है ॥
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मेरा दिल मेरे ही पास रहे तो अच्छा है ।
किसी को देकर पछताने से तो अच्छा है ॥
हम छोटे ज़रूर थे, पर बे-एतबार कभी न थे !
थोड़े बेदार ज़रूर थे, पर बेज़ार कभी न थे !!
बेदार - जागरूक
बेज़ार - गुस्सैल
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वफाई लग रहीं है पानी पानी सी !
जब से बेवफाएँ हुईं खानदानी सी !
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आज भरी महफिल में मुस्कराओ तो !
गश खाके कितने गिरेंगे आजमाओ तो !!
लोग कहते हैं तुम्हारा वो ज़माना न रहा !
सबकी ग़लतफहमियाँ दूर कराओ तो !!
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लोग कहते हैं जो उनसे मिलता है वो उनका हो जाता है !
हमने सोचा है अब देखेंगे वो कितनी बार मिलने से मेरे हो जायेंगे !!
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माथे पे शिकन, और ए बदहवास आँखें !
धोखा हुआ है इश्क़ में, या बिजली गिर पड़ी !!
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मेरा हर शुकून उनके हर शुकूँ से है !
गर है ए जुनून तो मज़ा मुझे इस जुनूँ से है !!
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ए कैसी ख़ुशबू बिखरी है फिज़ाओं में आज !
लगता है कोई काफिला हुश्न वालों का मेरे शहर से गुजरा है !!
तू अपने इरादे तो बता, वफाई करना है या जफ़ाकार होना है !
हम भी सोचेंगे तुझसे दिल लगाना है,
कि तुझे सरे बाज़ार करना है !!
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मेरी मुहब्बत की चाह उनके दिल तक भी जायेगी !
अब देखना ये है कि वो हसीन घड़ी कब आयेगी !!
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दिल के मुआमला हो तो दिल से ही काम लेना ज़रूरी है !
अक़्ल हमेशा सही रास्ते दिखायेगी दिल का रास्ता बंद करके !!
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हमारी उनसे नजदीकियाँ ज़माने में बनी !
याद है एक ही दिन में दूरियाँ उतनी ही बनी !!
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किसी ने कहा है इश्क छुपाये नहीं छुपता !
सच ये भी है यही दिल है जो इसका राज खोल देता है !!
पैसे की ताक़त ही किसी को समंदर पार ले आयी !
मैं अपनी ग़ुरबत में अपने घर से भी ना निकला !!
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सफर में चल रही है ये जिंदगी, मंज़िलों की मरीचिका में !
फैसला तेरे हाथों में है जहन्नुम मिलेगा या जन्नत नसीब है !!
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हूर सा हुश्न और ये हिजाब का बार बार उड़ना !
ख़ुद नक़ाब भी शर्माये है पर्दा करने से !!
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सोचा था मुहब्बत मुझे आबाद करेगी !
अंजाम ये है कि इसने दर्दे दिल से भर दिया !!
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जब से इंसान कौड़ियों मे बिकने लगा !
भ्रष्टाचार का कारोबार सरे आम दिखने लगा !!
हर इंसान को चाहिए इंसानियत की हद में रहे !
जिसकी जितनी औकात, अपनी कद में रहे !!
सबको बक्शा है, हैसियत से हिसाब करके !
गुमान न हो किसी का और ना कभी मद में रहे !!
मेरे रब ये तेरी मर्जी है तू मुझे आबाद कर या ख़ाक कर !
कोई बूढ़े से पेड़ की कोई हल्की सी पत्ती या उसकी शाख़ कर !!
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इजाज़त हो तो कुछ अर्ज़ करें तेरी आँखों पर !
जब देखता है "साँझ" इनको इक नयी ग़जल बनती है !!
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मंज़िलें उसकी आसानियों से पायी गयीं !
"साँझ" की राह के पत्थर भी उसके दुश्मन थे !!
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सबकी नज़रें टिक गयीं उस चहकते फूल पर !
मैं सोचता हूँ उस मुरझायी कली का क्या होगा !!
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मुहब्बत में आबाद हुये वो क्या बतायेंगे !
'साँझ' बर्बाद हुआ है यह सबको कहे देता है !!
"डिगरियों" के साथ कुछ और भी हो कैरियर चमके !
इस उम्र में "साँझ" क्या करे एक डिपलोमा "जी हुजूरी" में !!
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इन ख़ुश्क आँखों में.... अब कोई..... सपना नहीं !
हरेक कतरा उन आँसुओं का सब कुछ बहा ले गया !!
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मैंने उसकी हिमायत में..... महफिल में कुछ कहा !
लोग मुझको भी उसके साथ सरे-आम कर गये !!
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उसके दिल की बस्ती को एक शख़्स ने पल भर में उजाड़ दिया !
"साँझ" हजारों लहमों में भी कोई उसके दिल में घर कर नहीं सकता !!
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अपनी नादानियों से अब तो तौबा कर लो !
तुम्हारी अभी उम्र नहीं दर्द-ए-दिल झेल जाने की !!
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यार की वफाई में दिल बाग बाग होता है !
बेवफाओं से वही दिल जख़्म जख़्म भी होता है !!
पैर उखाड़े मेरे, कोई सिकंदर आने दे !
बहा ले जाये जज़बात, समंदर आने दे !!
यूँ दूर दूर से मुझको क्या जानोगे !
पहले तो अपने दिल के अंदर आने दे !!
मेरी मौत पर, मेरी क़लम से कोइ ऐसा शे'र निकले !
"साँझ" की जाँ चाहे तो निकले पर मेरी जान की जाँ भी लेके निकले !!
आँधियों से कब कर ली "साँझ" दुश्मनी तुमने !
जो चराग़ों को साथ देकर मेरा घर जला दिया !!
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ज़िंदगी में कभी कोइ ऐसा मज़ा न हो !
"साँझ" उसके जाने से ज़िंदगी बेमज़ा न हो !!
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चली है ऐसी बयार बेवफायी की !
कौन पूछेगा हाल अब वफायी की !!
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आप जब आतें हैं तो खूब आतें हैं !
और फिर मुहब्बत.. में डूब जाते हैं !!
नज़र भर क्या हमपर नज़र करते हैं !
दूसरे पल ही ख़ुद ही ऊब जाते हैं !!
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उफफ.. ये इश्क़ भी क्या आफत है !
शुक्र है..... मेरी जाँ तो सलामत है !!
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अब तक उनकी हसरत में मेरी जान जाती है !
वो तो आसूदा हैं मेरा हाल क्या जाने !!
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अपने दुश्मनों को भी भूलकर कभी बेआबरू ना कर !
दुश्मनी के भी हैं कुछ उसूल नये रिवाज़ शुरू ना कर !!
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चल के पैदल ही तेरे साथ सफर कर लेंगे !
हम तेरी सादामिज़ाजी से बसर कर लेंगे !!