स्वाती,
स्नेह! पाठिका के रूप में लेखक से सम्पर्क की औपचारिकता आज एक पवित्र,
निर्मल, निस्वार्थ आत्मीयता में परिवत्र्तित हो गई है, तुम्हारे जीवन की
दूसरी पारी की राह में से कांटों को हटाकर मात्र मैंने ईश्वरीय प्रेरणा से
आज्ञापालन कर कत्र्तव्य भर ही निभाया है। तुम्हारे जीवन की दूसरी पारी
निष्कंटक मंगलमय हो, ईश्वर से यही प्रार्थना है।
पिता के अनन्त यात्रा पर जाने के पश्चात् भी तुम्हारी शिक्षा एवं विवाह
नहीं रूके। ईश्वर हर आवश्यकता पूरी करता है, माध्यम कोई भी हो, हर यात्री
प्रथम स्टेशन से अन्तिम स्टेशन तक साथ नहीं होते, फिर भी हमारी यात्रा पूरी
होती ही है। जीवन यात्रा में परिवार, सम्बन्धी, माता-पिता, जीवनसाथी,
भाई-बहन, मित्र-सहेली, जन्म से मृत्यु तक सभी साथ नही देते, कुछ आत्मीय
शीघ्र बिछड़ जाते हैं, कुछ देर से मिलते हैं। भावना का महत्त्व है, पर जीवन
व्यावहारिकता से चलता है।
बंद कमरे में आंसू बहाने से पिता वापिस नहीं आ जाऐंगे। शिक्षा के विवेक से
मम्मी की सेवा करने का प्रयत्न करो, जीवन संध्या में जब किसी कारणवश भाई उन
तक नहीं पहुच पाऐं, तो तुम उनकी सेवा करने पहुंचना, सम्पत्ति के मेवे की
आशा मत करना। कानून तुम्हारे अधिकार का मेवा दिला देगा, पर भाई के बन्द
दरवाजे नहीं खुला पाएगा।
जीवन की दूसरी पारी में जीवन साथी से जुडे़ नए रिश्तों को अपना बनाओ,
आत्मनिर्भर बनो, एक अच्छी इन्सान बनो, चरित्र को निर्मल रखो, जीवन साथी से
अनुमति लेकर अपनी आय का एक अंश मम्मी के कष्ट कम करने के लिए भेजो। पिता
नहीं मिल सकते अब, पर मम्मी की सेवा से पापा की आत्मा को शांति मिलेगी।
अपनो के कंधो पर सिर रखकर रो लेना, पर मम्मी के आँसू मत गिरने देना।
गुरू, स्वामी, महात्मा से अधिक सार्थक है ईश्वर पर भरोसा, ईश्वर की परीक्षा
में मेरिट में आना है। ईश्वर की परीक्षा का हर प्रश्न अनिवार्य होता है।
निर्धारित पाठ्य क्रम भी नहीं होता, कोचिंग भी नही मिल पाती, बस तन-मन-धन
का संतुलन बनाए रखकर कत्र्तव्य भर करना है।
स्वाती, ईश्वरीय प्रेरणा से मेरी ‘‘जीवन‘‘ पुस्तिका मेरे तुम्हारे सम्पर्क
का माध्यम बनी। जीवन संध्या में मैं एक विधुर, इकलौती सन्तान मिली बेटी को
उसकी पसन्द के साथी को जन्म भर के लिए सौंप कर परिवार की परिभाषा से
‘‘अकेला‘‘ रह गया हूँ, पर उसी मिली बेटी के घर ‘‘अतिथि‘‘ बनकर
गुणवत्तापूर्ण जीवन भी जी रहा हूँ। मैं ईश्वर का कृतज्ञ हूँ, उन्होने मुझे
तुम्हारे रूप में एक और बेटी दी।
सम्पर्क बनाए रखोगी, तो मेरी जीवन संध्या का अकेलापन कुछ कम होगा।
शुभाकांक्षी अंकल
दिलीप