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अहीर छंद

 

 

छंद सलिला:
(अब तक प्रस्तुत छंद: अग्र, अचल, अचल धृति, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्र वज्रा, उपेन्द्र वज्रा, कीर्ति, घनाक्षरी, छवि, दीप, दोधक, निधि, प्रेमा, माला, वाणी, शक्तिपूजा, शाला, सार, सुगति/शुभगति, सुजान, हंसी)

ग्यारह मात्रिक रौद्र छंद
ग्यारह मात्राओं से बननेवाले रौद्र छंद में विविध वर्णवृत्त संयोजन से १४४ प्रकार के छंद रचे जा सकते हैं.

 

 

अहीर छंद

 

अहीर ग्यारह मात्राओं का छंद है जिसके अंत में जगण (१२१) वर्ण वृत्त होता है.

उदाहरण:

१. सुर नर संत फ़क़ीर, कहें न कौन अहीर
आत्म ग्वाल तन धेनु, हो प्रयास मन-वेणु
प्रकृति-पुरुष कर संग, रचते सृष्टि अनंग
ग्यारह हों जब एक, पायें बुद्धि-विवेक

२. करे सतत निज काम, कर्ता मौन अनाम
'सलिल' दैव यदि वाम, रखना साहस थाम
सुबह दोपहर शाम, रचना रचें ललाम
कर्म करें अविराम, गहें सुखद परिणाम

३. पूजें ग्यारह रूद्र, मन में रखकर भक्ति
हो जल-बिंदु समुद्र, दे अनंत शुभ शक्ति
लघु-गुरु-लघु वर अंत, रचिए छंद अहीर
छंद कहे कवि-संत, जैसे बहे समीर

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संजीव ‘सलिल’

 

 

 

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