छंद सलिला:भानु छंद
संजीव
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छंद-लक्षण: जाति त्रैलोक लोक , प्रति चरण मात्रा २१ मात्रा, चरणांत गुरु
लघु (तगण, जगण), यति ६-१५।
लक्षण छंद:
भानु धन्य / त्रैलोक को देकर उजास
हो सबसे / इक्किस नहीँ करता प्रयास
छै-पंद्रह / पर यति, गुरु-लघु से कर अन्त
छंद रचे / कवि मन मौन-शांत ज्यों संत
उदाहरण:
१. अनीतियाँ / देखकर सुलग उठा पलाश
कुरीतियाँ / देखकर लड़ें न हों निराश
धूप-छाँव / के मिलन का नाम ज़िन्दगी-
साथ-साथ / हाथ-हाथ लो न हो हताश
२. हार नहीं / प्रियतम को मीत बढ़ पुकार
खार नहीं / कली-फूल-प्रीत को पुकार
शूल-धूल / धार-कूल भूल कर प्रयास
डाल-डाल / पात-पात खोज ले हुलास
३. भानु भोर / उषा को पुलक रहा तलाश
सिहर-सिहर / हुलस-हुलस मल रहा अबीर
चाह बाँह / में समेट ख़्वाब लूँ तराश
सुना रहा / कान में कवित लगा अबीर
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(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अहीर, आर्द्रा,
आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, ककुभ, कज्जल,
कामिनीमोहन कीर्ति, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जाया,
तांडव, तोमर, दीप, दीपकी, दोधक, नित, निधि, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष,
प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदनअवतार, मधुभार, मधुमालती, मनहरण
घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, योग, ऋद्धि,
राजीव, रामा, लीला, वाणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र,
शिव, शुभगति, सरस, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान, हेमंत, हंसगति, हंसी)
हिंदी आटा माढ़िये, उर्दू मोयन डाल
'सलिल' संस्कृत सान दे, पूरी बने कमाल
संजीव ‘सलिल’
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