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चंडिका छंद

 

 

 

"छंद सलिला:
चंडिका छंद
संजीव
*
दो पदी, चार चरणीय, १३ मात्राओं के मात्रिक चंडिका छंद में चरणान्त में गुरु-लघु-गुरु का विधान है.

लक्षण छंद:
१. तेरह मात्री चंडिका, वसु-गति सम जगवन्दिता
गुरु लघु गुरु चरणान्त हो, श्वास-श्वास हो नंदिता

२. वसु-गति आठ व पाँच हो, रगण चरण के अंत में
रखें चंडिका छंद में, ज्ञान रहे ज्यों संत में

उदाहरण:
१. त्रयोदशी! हर आपदा, देती राहत संपदा
श्रम करिये बिन धैर्य खो, नव आशा की फस्ल बो

२. जगवाणी है भारती, विश्व उतारे आरती
ज्ञान-दान जो भी करे, शारद भव से तारती

३. नेह नर्मदा में नहा, राग द्वेष दुःख दें बहा
विनत नमन कर मात को, तम तज वरो उजास को

४. तीन न तेरह में रहे, जो मिथ्या चुगली कहे
मौन भाव सुख-दुःख सहे, कमल पुष्प सम हँस बहे


*********"

 

संजीव ‘सलिल’

 

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