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मैं हूँ तितली,मुझे उड़ने दो परिन्दों की तरह

 

naarisabla

 

 

वर्ष के एक दिन 8 मार्च को अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाए जाने का क्या तर्क है? मैं इस बहस में नहीं पड़ना चाहता। इतना अवश्य कहना चाहूँगा कि दरअसल प्रत्येक जीव के जीवन का हर पल नारी दिवस है क्योंकि नारी के बिना जीवन की कल्पना भी संभव नहीं। साथियों, मैंने यह महसूस किया है कि आज आदमी तथाकथित जानवरों से भी बदतर हो चुका है। न केवल भारत में अपितु पूरे विश्व में नारी पर जो अत्याचार आए दिन देखने व सुनने को मिलते हैं, उससे यह प्रतीत होता है कि पुरुष पौरुषहीन अर्थात् नामर्द होता जा रहा है अन्यथा आप ही बताएँ कि क्या उस नारी पर भी अतिचार, अत्याचार, प्रताड़ना और बलात्कार जैसी कुत्सित घटनाएं घटतीं जो माँ भी है, बहन भी ,पत्नी भी है, बेटी भी और बहू भी....कदापि नहीं। वाह रे,पुरुष और पौरुष !!! छिः,थू.... लानत है ऐसी मर्दानगी पर जो औरतों का सम्मान नहीं कर सकती। इस देश के बुद्धिमान वोटर्स..सिस्टम को और पुलिस को गालियाँ देकर अपने नागरिक दायित्वों का निर्वहन कर लेते हैं और राजनेता एक-दूसरे की पार्टी पर आरोप-प्रत्यारोप कर के मामला ठंडा होने की प्रतीक्षा करते हैं ....जय हो!!! जीवन है....फिर कुछ ही दिनों में सब-कुछ बदस्तूर चलने लगता है। आप ही बताईए कि ये "रेयरेस्ट आँफ द रेयर केस" क्या होता है??? भई, मेरे मुताबिक तो हर बलात्कार रेयरेस्ट आँफ द रेयर होता है,,,भगवान भला करे सृष्टि का ...जय हो।

 

 

अब हमारे प्यारे और महान भारत देश के एक और ज्वलंत और खतरनाक मुद्दे का उल्लेख करना सामयिक होगा, वह है कन्या भ्रूण हत्या। चंद पैसों की खातिर कुछ असंवेदनशील चिकित्सकों ने अपनी ही जाति को ताक पर रख दिया है....गर्भ का परीक्षण कर गर्भस्थ कन्या भ्रूण को वहशी माता-पिता से भाड़ खाकर, गर्भ में ही काट-पीट कर, मासूम और कोमल माँस पिंड को नोच-नोच कर, मलीदा बनाकर जीव हत्या कर देते हैं,वाह रे आदमी,वाह रे औरत! वाह रे माता-पिता,वाह रे डाँक्टर!.....जय हो। अब पुरूष तो छोड़िए उस नारी के विषय में सोचिए जिसकी कोख में यह दुष्कृत्य होता होगा...लोमहर्षक, घृणित, भयानक, कुत्सित और क्या कहूँ?? न जाने वह कौन सा कारण होता होगा जिसमें नारियाँ स्वयं आगे बढ़कर इस जघन्य अपराध को हँसते-हँसते अंजाम देती हैं और अपनी ही प्रजाति और लिंग को नष्ट कर देती हैं,वाह रे आदमी की ज़ात! प्राणिश्रेष्ठ....?????।हमारे देश में स्त्री-पुरुष लिंगानुपात की वर्तमान दशा सभी जानते हैं...पता नही आगे और क्या-क्या देखना शेष है यहाँ। अब लाँ एन्ड आँर्डर की बात करें तो यहाँ तो कुछ भी किसी से छिपा नहीं है.....प्रजातंत्र है,राम-राज्य है महान भारत देश में ।

 

 

एक अपील है कि नारी का हृदय से सम्मान करें !!!
अभी इतना ही शेष फिर कभी,धन्यवाद।

 

 

एक नज़र मेरी आज की रचना पर....

 

 

"ख़ुदा ने ज़न्नत की तरह बख़्शी है ये दुनिया हमें,
यहाँ क्यों रहते हो, ज़हन्नुम के बाशिन्दों की तरह,

 

 

हो के इन्सान अपनी क़ौम के दुश्मन क्यों हो?
नाज़ुक़ अन्दाम पे क्यों ज़ुल्म दरिन्दों की तरह,

 

 

मुझे क्यों कोख में ही "राज़" खत्म करते हो?
मैं हूँ तितली,मुझे उड़ने दो परिन्दों की तरह।।

 

 

मैं हूँ तितली,मुझे उड़ने दो परिन्दों की तरह।।"

 

 

 

संजय कुमार शर्मा "राज़"

 

 

 

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