मण्डला . नि.प्र. , भारतीय संस्कृति में आत्म प्रशंसा को शालीनता के
विपरीत आचरण माना गया है , यही कारण है कि जहाँ विदेशी लेखकों के आत्म
परिचय सहज सुलभ हैं ,वहीं कवि कुल शिरोमणी महाकवि कालिदास जैसे भारतीय
मनीषीयों के ग्रँथ तो सुलभ हैं किन्तु इनकी जीवनी दुर्लभ हैं !
महाकवि कालिदास की विश्व प्रसिद्ध कृतियों मेघदूतम् , रघुवंशम् ,
कुमारसंभवम् , अभिग्यानशाकुन्तलम् आदि ग्रंथों में संस्कृत न जानने वाले
पाठको की भी गहन रुचि है ! ऐसे पाठक अनुवाद पढ़कर ही इन महान ग्रंथों को
समझने का प्रयत्न करते हैं ! किन्तु अनुवाद की सीमायें होती हैं ! अनुवाद
में काव्य का शिल्प सौन्दर्य नष्ट हो जाता है ! ई बुक्स के इस समय में भी
प्रकाशित पुस्तकों को पढ़ने का आनंद अलग ही है ! मण्डला के प्रो. चित्र
भूषण श्रीवास्तव विदग्ध जी ने महाकवि कालीदास कृत मेघदूतम् के समस्त १२१
मूल संस्कृत श्लोकों का एवं रघुवंश के सभी १९ सर्गों के लगभग १७०० मूल
संस्कृत श्लोकों का श्लोकशः हिन्दी गेय छंद बद्ध भाव पद्यानुवाद कर
हिन्दी के पाठको के लिये अद्वितीय कार्य किया है ! उदाहरण स्वरूप
मेघदूतम् हिन्दी पद्यानुवाद से एक श्लोक
मूल संस्कृत श्लोक
कस्यात्यन्तं सुखमुपगतं दुःखमेकान्ततोवा
नीचैर्गच्छिति उपरिचदशा चक्रमिक्रमेण ॥
हिन्दी अनुवाद
किसको मिला सुख सदा या भला दुःख
दिवस रात इनके चरण चूमते हैं
सदा चक्र की परिधि की भाँति क्रमशः
जगत में ये दोनों रहे घूमते हैं
प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव अपनी विभिन्न कृतियों मुक्तक मंजूषा हिन्दी
छंदबद्ध १०८ देश प्रेम के गेय गीत वतन को नमन नैतिक कथायें ईशाराधन
अनुगुंजन आदि पुस्तकों हेतु सुपरिचित हैं !
धर्म तो प्रेम का दूसरा नाम है , प्रेम को कोई बंधन नहीं चाहिये
सच्ची पूजा तो होती है मन से जिसे आरती धूप चंदन नहीं चाहिये
................प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव की.मुक्तक मंजूषा से
हिमगिरि शोभित सागर सेवित
सुखदा गुणमय गरिमा वाली
सस्य श्यामला शांति दायिनी
परम विशाला वैभवशाली ॥
प्राकृत पावन पुण्य पुरातन
सतत नीती नय नेह प्रकाशिनि
सत्य बन्धुता समता करुणा
स्वतंत्रता शुचिता अभिलाषिणि ॥
ग्यानमयी युग बोध दायिनी
बहु भाषा भाषिणि सन्मानी
हम सबकी माँ भारत माता
सुसंस्कार दायिनि कल्यानी ॥
................प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव की वतन को नमन से अंश
हो रहा आचरण का निरंतर पतन , राम जाने कि क्यों राम आते नहीं
है सिसकती अयोध्या दुखी नागरिक देके उनको देके शरण क्यों बचाते नहीं ?
..................प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव की अनुगुंजन से
शुभवस्त्रे हंस वाहिनी वीण वादिनी शारदे ,
डूबते संसार को अवलंब दे आधार दे !
हो रही घर घर निरंतर आज धन की साधना ,
स्वार्थ के चंदन अगरु से अर्चना आराधना !
आत्म वंचित मन सशंकित विश्व बहुत उदास है ,
चेतना जग की जगा मां वीण की झंकार दे !
.............................प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव की ईशाराधन से
महाकवि कालीदास कृत रघुवंशम् का श्लोकशः हिन्दी पद्यानुवाद द्वारा
प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव
समस्त १९ सर्ग लगभग ४०० पृष्ठ लगभग १७०० श्लोक हेतु उन्हें प्रकाशक चाहिये
! रघुवंशम् से अंश इस तरह है
वागवर्थाविव संपृक्तौ वागर्थप्रतिपत्तये ।
जगतः पितरौ वन्दे पार्वतीपरश्वरौ ।।
जग के माता - पिता जो , पार्वती - षिव नाम
षब्द - अर्थ सम एक जों , उनको विनत प्रणाम ।। 1 ।।
क्क सूर्यप्रभवो वंषः क्क चाल्पविषया मतिः ।
तितिर्षुर्दस्तरं मोहाड्डपेनास्मि सागरम् ।।
कहां सूर्य कुल का विभव , कहां अल्प मम ज्ञान
छोटी सी नौका लिये सागर - तरण समान ।। 2 ।।
मन्दः कवियषः प्रार्थी गमिष्याम्युपहास्यताम् ।
प्रांषुलभ्ये फले लोभादुद्वाहुरिव वामन: ।।
मूढ़ कहा जाये न कवि , हो न कहीं उपहास
बौना जैसे भुज उठा धरे दूर फल आस ।। 3 ।।
शासन हर वर्ष कालिदास समारोह के नाम पर करोंडों रूपये व्यय कर रहा है ! जन
हित में इन अप्रतिम कृतियों को आम आदमी के लिये संस्कृत में रुचि पैदा करने
हेतु सी डी में तैयार इन पुस्तकों को इलेक्र्टानिक माध्यमों से दिखाया जाना
चाहिये ! जिससे यह विश्व स्तरीय कार्य समुचित सराहना पा सकेगा !
उनका पता है
प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव
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