Sudheer Maurya
| कानपूर रवाना होने से पहले में राबिया के घर गया था उसे बताने की में
कानपूर जा रहा हूँ | उस वक़्त युसूफ घर न था चच्ची भी कंही गयी थी | हाँ
राबिया के अब्बू को दो-तीन साल पहले ही जन्नतनशी हो चुके थे राबिया उस
वक़्त घर पर अकेली थी |
जब मैंने उस वक़्त उस से कहा की में कानपूर जा रहा हूँ उसने मेरा हाथ पकड
कर पलंग पर बिठा लिया था और खुद मेरे बगल में बैठ गयी थी मेरे हाथ को अपने
हाथ में लेकर वो बोली थी |
सूरज- ऋतू के साथ जो हुआ बहुत बुरा हुआ
में कुछ बोला न था
वोह उसी तरह मेरे हाथ को पकडे हुए बोली थी आप तोह उसे चाहते थे बहुत दुःख
हुआ होगा ना
मैंने हां में सर हिलाया था और कहा था,मेरी चाहत एक तरफ़ा थी राबिया |
मैंने महसूस किया था उस वक़्त उसके हाथों की पकड़ मेरे हाथों पर थोडा सख्त
हो गयी थी
कानपूर क्यूँ जा रहे हो, उसने वापस सवाल किया था
उत्तर में मैंने पूरी तफ्शील बयाँ कर दी थी, जिसे वो शांति से सुनती रही थी
| फिर बोली में अल्लाह से दुआ मागुंगी वो तुम्हे कामयाब करे |