मैं "किसी से" बेहतर करुं
क्या फर्क पड़ता है..!
मै "किसी का" बेहतर करूं
बहुत फर्क पड़ता है..!!
एक काफिला सफ़र के दौरान अँधेरी सुरंग से गुजर रहा था । उनके पैरों में कंकरिया चुभी, कुछ लोगों ने इस ख्याल से कि किसी और को ना चुभ जाये, नेकी की खातिर उठाकर जेब में रख ली । कुछ ने ज्यादा उठाई कुछ ने कम । जब अँधेरी सुरंग से बाहर आये तो देखा वो हीरे थे। जिन्होंने कम उठाये वो पछताए कि ज्यादा क्यों नहीं उठाए । जिन्होंने नहीं उठाए वो और पछताए । दुनिया में जिन्दगी की मिसाल इस अँधेरी सुरंग जैसी है और नेकी यहाँ कंकरियों की मानिंद है । इस जिंदगी में जो नेकी की वो आखिर में हीरे की तरह कीमती होगी और इन्सान तरसेगा कि और ज्यादा क्यों ना की।
संचिता घोष