डॉ अजय जनमेजय
धरती चक्कर काट के, सूरज का इक और |
भेंट करे नववर्ष को ,कुछ तो करिए गौर |
कुछ तो करिए गौर ,सोचिये कुछ तो कारण |
हुई धरा बैचेन ,करेगा कौन निवारण |
माँ जैसी ये रोज ,दिलों में खुशियाँ भरती |
रखें धरा का ध्यान ,मिली माँ जैसी धरती ||
दुख शिक्षक सबसे बड़ा ,इससे बड़ा न कोय |
जो -जो इससे है पढ़ा ,वो काहे को रोय |
वो काहे को रोय ,कष्ट जो जाने सहना |
वो तो हर हालात ,सीख जाता है रहना |
जिसको हो ये बोध ,यहाँ क्षणभंगुर है सुख |
वो तो चाहे ज्ञान ,ज्ञान का शिक्षक है दुःख ||
जगा लिए जब आपने, भीतर के भगवान |
रूप तभी भगवान का ,बनता है इंसान |
बनता है इंसान ,जानकार प्रभु की सत्ता |
प्रभु के बिन संज्ञान ,न हिल पाता है पत्ता |
मिट जाते सब फर्क ,कौन क्यों कोई क्या कब |
भीतर के भगवान् ,आपने जगा लिए जब ||
तैराकी में थे निपुण ,डूबे उथले नीर |
बाहर होकर दौड़ से ,खड़े नदी के तीर |
खड़े नदी के तीर ,रेस जीते नौसिखिये |
नाचे पहली बार ,बने वो ही नचबलिये |
दिल्ली में ये हार ,हो गई "आप" बला-की |
हो कुर्सी से दूर,लगा भूले तैराकी ||
हक्की -वक्की रह गई,बड़ों बड़ों की सोच |
कमल जरा सा कम खिला ,लगी हाथ को मोच |
लगी हाथ को मोच ,पकडनी मुश्किल झाड़ू |
बनी "आप" तो बाप,कहें या काम बिगाडू |
आओ पहले आप ,हो रही धक्कामुक्की |
दिल्ली भी खुद आज ,रह गई हक्की -वक्की ||
खिसकी आज जमीन तो ,खींचे तुमने पैर |
वैसे जनता लूटकर ,निभा रहे थे वैर |
निभा रहे थे वैर ,आज पर पलटा पासा |
पड़ी वोट की चोट ,तमाशा अच्छा खासा |
जनता थी चुपचाप ,मगर वो कब तक पिसती |
किया मतों से चित्त्त,धरा पैरों की खिसकी ||
चक्की जब उसकी चले ,साबुत बचे न कोय |
काम बुरा तो फल बुरा ,क्यों अब बैठा रोय |
क्यों अब बैठा रोय ,सोचता गर तू पहले |
फिर तुझ पर ये आज, न पड़ते नहले दहले |
हुए सभी के भोग ,काम के सँग-सँग नक्की |
पीसे सबके कर्म ,चल रही उसकी चक्की ||
मूषक जैसे काटते ,संबंधो को रोज |
ऐसे जो भी लोग हैं ,रखिये करके खोज |
,रखिये करके खोज ,बात औरों की इन पर |
खुद की हो जो बात ,करें कब बात परस्पर |
कह सकते हैं आप ,इन्हें परजीवी चूषक |
रहते बनकर मित्र ,काम पर जैसे मूषक ||
शंका शंकित कर रही,संशय बढ़ते रोज |
जो शंका में फँस गया,ख़त्म हुई कब खोज |
खत्म हुई कब खोज ,बनाता मन है बातें |
शंका का ये सर्प ,डस रहा दिन ओ रातें |
जो देखें हैं तथ्य ,बजा बस उनका डंका |
छुपी हुई तलवार ,वार करती है शंका ||
मारक हैं बाते सदा ,रखिये इसका ध्यान |
बिन सोचे जो बोलते,होता है नुक्सान |
होता है नुकसान, शब्द बन जाते आरी |
शब्दों की तलवार ,घाव करती दोधारी |
सोच समझ कर शब्द ,कहें जो हों उपचारक |
दिया नहीं गर ध्यान ,शब्द बन जाते मारक |
प्रेरक बनकर यदि जिएँ ,रखता याद समाज |
इक छोटी सी प्रेरणा , सफल करे है काज |
सफल करे है काज ,मिला जब तन मानव का |
चलें उसी अनुरूप , रखें क्यों मन दानव का |
हो जीवन का ध्येय , ज़िन्दगी हो उत्प्रेरक |
मिलती खुशी अपार ,जिओ यदि बनकर प्रेरक ||
याचक बन कर क्यों खड़ा ,लिए झुका तू माथ |
प्रभु ने जब तुझको दिया ,दो हाथों का साथ |
दो हाथों का साथ ,हाथ भी तारनहारी |
नहीं किसी का भाग्य, बनाता कभी भिकारी |
सब कुछ लिक्खा माथ,सदा से सोच अराजक |
जो भी करता कर्म ,बनेगा क्योकर याचक ||
जीता मन तो जीत है ,हारा मन तो हार |
मन इक कारण है बड़ा ,करो इसे स्वीकार |
करो इसे स्वीकार ,मचलता रहता पल -पल |
बच्चे जैसी जिद्द ,इसे समझाना मुश्किल |
मन जब रहे न संग ,रहे इक इक पल रीता |
मै जीता हर जंग ,मित्र जब मन को जीता ||
ईसाई या पारसी ,मुस्लिम हिन्दू जैन |
पल भर को पड़ता नहीं ,बिन इक दूजे चैन |
बिन इक दूजे चैन ,एक माला के मनके |
को कोई भी पीर ,सभी के आँसू छलके |
धरा गगन है एक,एक भारत सच्चाई |
हिन्दू सिख या बोद्ध ,मुस्लिम जैन ईसाई ||
वृक्षारोपण हम करें ,सुन्दर हो संसार |
फल ,छाया लकड़ी सभी , दे करते उपकार |
दे करते उपकार ,नहीं पर ये दर्षाते |
फिर भी लाखों पेड़, रोज हैं काटे जाते |
क्या मानव का काम, करे बस दोषारोपण |
धरती की है माँग ,करें सब वृक्षारोपण ||
जल जंगल व जमीन का ,नहीं रखा गर ध्यान |
भुगतेगा इस भूल को , पूरा हिन्दुस्तान |
पूरा हिंदुस्तान , करें पूरी तैयारी |
चलो लगायें पेड़ छोड़ , लालच की आरी |
कहती आज जमीन ,सोचिये मेरा मंगल |
क्या है जीवन मित्र ,एक पल बिन जल जंगल |
गंगा माँ तट पर सजा ,गंगा पर्व नहान |
धन्य भक्त सब हो रहे ,कर गंगा का ध्यान |
कर गंगा का ध्यान ,आचमन गंगा जल का |
माँ से पाते भक्त ,रास्ता हर मुश्किल का |
गंगा मैली आज ,काम क्या है ये चंगा |
जन्म मरण में साथ ,पूजिए माँ है गंगा ||
प्यारी है सबसे खबर ,मिला रत्न को रत्न |
पूरे भारत देश ने ,दिल से किया प्रयत्न |
दिल से किया प्रयत्न ,सचिन है सबका प्यारा |
पर्सन ऑफ़ दि वीक, खेल का ये ध्रुव तारा |
आखीरी जो मैच ,धमाके की इक पारी |
मिला रत्न को रत्न ,खबर ये सबसे प्यारी ||
कलकत्ता मैदान में ,क्रिकेट का भगवान |
साक्षी बना खेल का ,ईडन का मैदान |
ईडन का मैदान ,गलत आउट फरमाया |
लेकर बोलिंग हाथ ,एक बिकेट चटकाया |
धोनी आश्विन खेल ,जमाया है अलबत्ता |
रोहित सौ के पार ,भा गया है कलकत्ता ||
मुश्किल आसाराम की ,बढ़कर हुई पहाड़ |
मैं- मैं भी धीमी हुई ,मिमिया रही दहाड़ |
मिमिया रही दहाड़ ,फंसे स्वामी नारायण |
करते थे दुष्काम ,सुनाते थे रामायण |
मिलनी ही थी जेल ,दुखाया नारी का दिल |
खुलते जाते राज ,बढ़ रहीं पल पल मुश्किल ||
मंगल हो मंगल मिशन ,कल है श्री गणेश |
अन्तरिक्ष में भी बढ़ा ,मेरा भारत देश |
मेरा भारत देश ,बड़ा है खर्चा माना |
श्री हरी कोटा नाम ,विश्व ने पूरे जाना |
लाल ग्रह पर खोज ,बहा था जल क्या कल-कल |
मंगल का अभियान ,करेंगे प्रभु जी मंगल ||
दीपों का त्यौहार ये ,झिलमिल करे प्रकाश |
माँ लक्ष्मी जी आपकी ,पूर्ण करें सब आस |
पूर्ण करें सब आस ,न भटके पास विफलता |
पग-पग चूमे पैर ,आपके रोज सफलता |
जगमग वन्दनवार ,मोतियन का सीपों का |
शुभ शुभ शुभ हो पर्व ,पर्व जगमग दीपों का ||
दीवाली शुभ आपको ,दीपों का त्यौहार |
दीपों की ये रोशनी ,पहुँचे हर घर द्वार |
पहंचे हर घर द्वार ,द्वार पर खुशियाँ चहकें |
हो जिसके भी स्वप्न ,स्वप्न सच होकर महकें |
उन्नति के पथ देश ,देश में हो खुशहाली |
खुशहाली जब संग ,तभी सच्ची दीवाली ||
धनतेरस पर आपको ,खुशियों का उपहार |
धन्न,अन्न से पूर्ण हों ,घर के सब भण्डार |
घर के सब भण्डार ,खुशी सारे नर -नारी |
धन्वन्तरि, यमदेव, कुबेर, विष्णु अवतारी |
क्रपा करें सब देव ,मिले धन ,वैभव ओ यश |
करें सभी सद कर्म ,सभी को शुभ धनतेरस ||
मारामारी छिड़ गयी ,ले सरदार पटेल |
इक दूजे को कोसते ,पी पी करके तेल |
पी पी करके तेल .एक कहता कांग्रेसी |
दूजा पूछे प्रश्न ,क्यों नहीं इज्जत वैसी |
भारत के ये लाल ,सभी की जिम्मेदारी |
दिल में रखें पटेल ,छोड़ सब मारामारी ||
पटना में मारे गए ,पाँच आदमी आम |
लगातार थे बम फटे , नीच सोच का काम |
नीच सोच का काम ,हुए लगभग सौ घायल |
चुप गांधी मैदान ,कौन ये करता पागल |
बने वही सरकार ,जो रोके ऎसी घटना |
निर्दोषों की मौत ,हिल गया पूरा पटना ||
कबसे मेरा ख्वाब था ,आज हुई है दीद |
वो दिन भी लो आ गया ,आज आ गयी ईद |
आज आ गयी ईद ,दिलों में प्रेम बढाने |
हिंसा नफरत द्वेष,दिलों से आज मिटाने |
मेरा मैं हो नष्ट ,प्रार्थना मेरी रब से |
बढे अमन ओ चैन ,ख्वाब था मेरा कब से ||
भगदड़ मंदिर में मची ,अफरातफरी हाल |
लाखों की उस भीड़ में . हुए सभी बेहाल |
हुए सभी बेहाल , भाग्य कितनों का रूठा |
गयीं सैकड़ों जान , साँस का धागा टूटा |
नवमी के दिन पूज्य ,रतन गढ़ माता का गढ़ |
दतिया मध्य प्रदेश ,मची मंदिर में भगदड़ ||
रावन अन्दर का जला ,बिखरे सुन्दर रंग |
काम क्रोध ओ मोह के ,अंग जले सब संग |
अंग जले सब संग ,रंग है निखरा - निखरा |
जब था रावन वास ,सभी था बिखरा -बिखरा |
तन मन अब सब शांत ,हुआ मौसम मन भावन |
पाई खुशी अपार ,जलाकर मन का रावन ||
फैलाने दहशत चला ,अब फेलिन तूफ़ान |
ओडिशा ओर आंध्र तट ,करने को नुक्सान |
करने को नुक्सान ,तेज गति बारिश भारी |
दो सौ की रफ़्तार , बनाती हाहाकारी |
चक्रवात गुस्सैल , खड़ा है रूप दिखाने |
आया अपने देश , आज दहशत फैलाने ||