(एक संस्मरण)
अब से 15-16 साल पहले की बात है, तब हम सरदार पटेल मार्ग आफीसर्स रेलवे
कोलोनी मे रहते थे। वहाँ पास पड़ौस की महिलाओं के साथ एक किटी पार्टी भी
होती थी, जिसमे से कुछ महिलाये अध्यापिका भी थीं।उस समय मेरी कवितायें और
लेख पत्रिकाओं मे आते रहते थे।एक मित्र मधुर आहुजा ने अचानक मुझसे कहा कि
उसके स्कूल मे हिन्दी अध्यापिका का स्थान रिक्त है,उसने प्रिंसिपल से बात
भी करली है,मेरे बारे। बोर्ड की परीक्षा मे भीसिर्फ 4 महीने हैं, उन्हे
नियु्ति करने की जल्दी है।
मैने कभी अध्यापिका बनने की इच्छा किसी मित्र ज़ाहिर नहीं की थी,मैने बी.
एड भी नहीं किया था यह भी मधुर को मालुम था। मधुर के ज़ोर देने पर मै
इंटरवयू देने को तैयार हो गई। मधुर के अनुसार इंटरव्यू तो मात्र औपचारिकता
था।
मधुर मेरा प्रिंसिपल से परिचय करवा कर चली गई। औपचारिक अभिवादन के बाद मैने
अपना प्रार्थनापत्र उनकी ओर बढ़ा दिया।
‘’Oh it is in Hindi my Hindi is not good’’, उन्होने निराशा से कहा।
मैने कहा’’ हिन्दी अध्यापिका के पद के लियें हिन्दी मे प्रार्थनापत्र लिखना
मुझे सही लगा।‘’ उन्होने मुझे ऐसे देखा मानो मै चीनी या जापानी भाषा मे बोल
रहीं हूँ।
‘’You know our school is an English medium school, you can’t speak Hindi
all the time’’ उन्होने कहा।
शायद वो मेरी इंगलिश बोलने की योज्ञता परखना चाहती थीं, जिसका मौका मैने
उन्हे नहीं दिया। मुझे उनका हिन्दी के प्रति रवैया देखकर बहुत निराशा हुई,
मै वहाँ से उठकर चल दी।
बीनू भटनागर