छंद सलिला:
शिव (समानिका) छंद
संजीव
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लक्षण: जाति रौद्र, पद २, चरण ४, प्रति चरण मात्रा ११, ३ री, ६ वी, ९ वी
मात्र लघु, मात्रा बाँट ३-३-३-२, चरणान्त लघु लघु गुरु (सगण), गुरु गुरु
गुरु (मगण) या लघु लघु लघु (नगण), तीव्र प्रवाह।
लक्षण छंद:
शिव-शिवा रहें सदय, रूद्र जग करें अभय
भक्ति भाव से नमन, माँ दया मिले समन
(संकेत: रूद्र = ११ मात्रा, समन = सगण, मगण, नगण)
उदाहरण:
१. हम जहाँ रहें सनम, हो वहाँ न आँख नम
कुछ न याद हो 'सलिल', जब समीप आप-हम
२. आज ना अतीत के, हार के न जीत के
आइये रचें विहँस, मीत! गीत प्रीत के
नीत में अनीत में, रीत में कुरीत में
भेद-भाव कर सकें, गीत में अगीत में
३. आप साथ हों सदा, मोहती रहे अदा
एक मैं नहीं रहूँ, आप भी रहें फ़िदा
४. फिर चुनाव आ रहे, फिर उलूक गा रहे
मतदाता आज फिर, हाय ठगे जा रहे
केर-बेर साथ हैं, मैल भरे हाथ हैं
झूठ करें वायदे, तोड़ें खुद कायदे
सत्ता की चाह है, आपस में डाह है
रीति-नीति भूलते, सपनों में झूलते
टीप: श्यामनारायण पाण्डेय ने अभिनव प्रयोग कर शिव छंद को केवल ९ वीं मात्रा लघु रखकर रचा है. इससे छंद की लय में कोई अंतर नहीं आया. तदनुसार प्रस्तुत है उदाहरण ४.
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, ककुभ, कीर्ति, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, छवि, जाया, तांडव, तोमर, दीप, दोधक, नित, निधि, प्रदोष, प्रेमा, बाला, भव, मधुभार, मनहरण घनाक्षरी, माया, माला, ऋद्धि, रामा, लीला, वाणी, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शिव, शुभगति, सार, सिद्धि, सुगति, सुजान, हंसी)
Sanjiv verma 'Salil'