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शिकवा -ए- इज़हार

 

 

दिखी तब तेरी दुनिया , हुआ जब से बे-दार,
पैगामे-मुस्तक़िल कोई, न मिले दीदे- बाज़ार,
दिल याद करे तुझको, फिर क्यूँ न बारम्बार,
पहलू में तेरा प्यार, मुझे हरदम हुई दरकार ।

 

 

अंजुमने-ख्यालों में, इक उलझी हुई तक़रार,
जुबां बे-सब्र हुई, कुछ भी कहने को बे-करार,
दिल न करे फिर भी, क्यूँ सच्चाई का इक़रार,
दौरे-रुसवाई में है, सिर्फ शिकवा -ए- इज़हार ।

 

 

 

' रवीन्द्र '

 

 

 

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