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उभरते कलाकार ...बीनू भटनागर

 

 

पात्र- पत्रकार  और मैं

  स्थान- BHT चैनल का स्टूडियो

  पहला दृष्य

पत्रकार-  (दर्शकों को संबोधित करते हुए)  दर्शकों उभरते कलाकारमें आपका स्वागत है। आज पहली                   बार इस मंच पर, इस कार्यक्रम में मैं आपको एक 65 वर्षीय लेखिका से मिलवा रही हूँ। कहते हैं    सीखने की कोई उम्र नहीं होती तो किसी क्षेत्र में पहला क़दम रखने की भी कोई आयु नहीं होती, (मेरी तरफ़ मुडकर)  तो मिलिये सुश्री बीनू भटनगर जी से।

मैं-   नमस्ते। 

पत्रकार-  (मुझे संबोधित करते हुए)  आपको फिल्म प्यार हुआ इकरार हुआ की पटकथा संवाद और गीत लिखने का अवसर मिला है, कैसा लग रहा है ?

मैं- ( ये भी कोई सवाल है किसी को बुरा लगेगा क्या ?) जी, बहुत अच्छा लग रहा है। मैंने कभी सोचा भी  नहीं था कि मुझे श्री अजय शीला संचाली जी की फिल्म लिखने का अवसर मिलेगा। मेरे लियें बहुत ख़ुशी और गर्व का अवसर है।

पत्रकार- बीनू जी, आपने लिखना कब से शुरू किया ?

मैं- किसी भी क्षेत्र में जब थोड़ी सी भी सफलता मिल जाती है तो लोग कहते हैं कि बचपन से ही वह उस काम मे रुचि ले रहे थे, पर मैंने अपनी पहली कविता 52 वर्ष की उम्र में लिखी।

पत्रकार- ऐसा क्यों ?

मैं- मुझे पता ही नहीं था कि मैं लिख सकती हूँ।

पत्रकार- फिर कैसे पता चला ?

मैं- डायरी लिखने से।

पत्रकार- आपकी पहली रचना ?

मैं- पहले ख़ुद को ढँढू पाँऊ,

फिर अपनी पहचान बताऊँ।

पत्रकार- पहली प्रकाशित रचना ?

मैं-  दूर गगन पर एक सितारा,

  ना वो मेरा ना वो तुम्हरा।

    1999   में एक पाक्षिक पत्रिका में प्रकाशित हुई थी।

पत्रकार-  और क्या क्या लिखा आपने ?

मैं- कुछ ख़ास नहीं कुछ कवितायें और लेख पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे।

पत्रकार- फिर ?

मैं-  लगभग 10 साल का अंतराल...

पत्रकार- क्यों ?

मैं- प्रकाशन के क्षेत्र में कम्प्यूटर और इंटरनैट आने की वजह से लेखकों के लियें टाइप करना आना और कम्प्यूटर के प्रयोग करने का प्राथमिक ज्ञान होना आवशयक हो गया था। उस समय लगा था कि उस उम्र में ये सब सीखना संभव नहीं होगा।

पत्रकार- फिर अचानक दोबारा शुरुआत कसे  हुई?

मैं- देखते देखते कम्प्यूटर का डर कम हो चुका था, लिखने का भी मन होने लगा था, लिखो तो कोई पढ़ने वाला भी चाहिये।  देवागरी  में टाइप करना सीखने में और कम्प्यूटर का उपयोग सीखने में ज़्यादा समय नहीं लगा। शीघ्र ही विभिन्न ई-पत्रिकाओं और ब्लौग्स पर मेरी रचनाये आने लगीं, कुछ प्रशंसक भी मिलने लगे। कुछ मित्र मिले कुछ मार्गदर्शक, जिनके प्रोत्साहन की वजह से कुछ कुछ लिखती रही, इंटरनैट पर भी अपनी जगह  बनाने में बहुत संघर्ष नहीं करना पड़ा, जितना सोचा नहीं था उससे कंहीं अधिक स्नेह मिला।

पत्रकार- लेखन में आपकी मुख्य विधा क्या है?

मैं-  मेरी कोई विधा है ही नहीं है, कविता, लेख, साहित्यक, निबन्ध, संस्मरण, बच्चों के लियें कवितायें, यात्रा वृतान्त गद्य और पद्य में, लघुकथा,  कहानी, चुटकुले और व्यंग भी लिखे हैं। यही नहीं रसोई से अपने अनुभव, अचार बनाने की विधियाँ भी  लिखीं  हैं, तो  दूसरी ओर   आम आदमी को, आम आदमी की भाषा में मनोवैज्ञानिक विषयों की जानकारी दी है।

पत्रकार- साहित्य का कोई ऐसा क्षेत्र जो आपसे अनछुआ रहा हो ?

मैं- बहुत से होंगे,  पौराणिक गाथाओं पर नहीं लिखा,  हास्य कविता और छन्द बद्ध काव्य भी नहीं लिखा।

पत्रकार-  छन्दबद्ध काव्य नहीं लिखा तो फिल्मों के गीत कैसे लिख पायेंगी  ?

मैं- यह सही है कि मुझे छंद शास्त्र का कोई विशेष ज्ञान नहीं है फिर भी फिल्मी गीत लिखना कठिन नहीं होगा,  क्योंकि आजकल संगीतकार धुन पहले बनाते हैं, गीत बाद में लिखे जाते हैं।  धुन गुनगुनाने लगो तो शब्द मिलने लगते   हैं, शब्द न मिलें तो ढिंचि का क..जैसे निरर्थक शब्द डाले जा सकते हैं।

पत्रकार- कोई चुनौती ?

मैं- अभी तक अपनी मर्ज़ी का लिखा था, अब निर्माता की मर्ज़ी का लिखना है।

पत्रकार- अभी तक आपकी कोई पुस्तक नहीं छपी  ?

मैं- जी नहीं, कोई प्रकाशक मिलने की आशा नहीं थी इसलियें कोशिश भी नहीं की।

पत्रकार- आपको यह फिल्म कैसे मिली  ?

मैं- श्री  अजय शीला संचाली जी ने इंटरनैट पर मेरी रचनायें पढ़ी, उन्हे मेरी भाषा पसन्द आई,  उन्होने मुझे आश्वासन दिया है कि वो  पटकथा लेखन की बारीकियाँ मुझे समझा देगे। उन्हे मेरी योग्यता पर भरोसा है, तो कोई कारण नहीं कि मैं ख़ुद पर भरोसा न करूँ।

पत्रकार-  हमारी चैनल और पूरी टीम की तरफ से बहत बहुत शुभकामनायें ।

मैं- धन्यवाद।

 

दूसरा दृष्य

स्थान- मेरे सोने का कमरा, समय- सुबह 8.30 पात्र- मैं और मेरी बेटी

मैं सो रही हूँ, मेरी बेटी कमरे मे प्रवेश करती है।

 

बेटी-  मम्मी उठिये, अभी काम वाली का फोन आया था आज वो नहीं आयेगी।

मैं- उफ.. इतना अच्छा सपना देख रही थी.. कहाँ से कहाँ पटक दिया चलो भई करो बर्तन..सफाई..

 

 

 

बीनू भटनागर

 

 

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