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उपेन्द्र वज्रा

 

 

छंद सलिला:

उपेन्द्र वज्रा

संजीव

 

 

*

इस द्विपदिक मात्रिक छंद के हर पद में क्रमश: जगण तगण जगण २ गुरु अर्थात ११ वर्ण और १७ मात्राएँ होती हैं.

उपेन्द्रवज्रा एक पद = जगण तगण जगण गुरु गुरु = १२१ / २२१ / १२१ / २२

 

 

 

उदाहरण:

१. सरोज तालाब गया नहाया

सरोद सायास गया बजाया

न हाथ रोका नत माथ बोला

तड़ाग झूमा नभ मुस्कुराया

 

२. हथेलियों ने जुड़ना न सीखा

हवेलियों ने झुकना न सीखा।

मिटा दिया है सहसा हवा ने-

फरेबियों से बचना न सीखा

 

३. जहाँ-जहाँ फूल खिलें वहाँ ही,

जहाँ-जहाँ शूल, चुभें वहाँ भी,

रखें जमा पैर हटा न पाये-

भले महाकाल हमें मनायें।

 

 

 

संजीव ‘सलिल’

 

 

 

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