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तन मन धन हो जाए तरबतर
शुभ और लाभ की यूँ बारिश हो
ये प्रार्थना है धनलक्ष्मी से
धन्य तुम्हारी धनतेरस हो
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हिन्द की फौज के वो शेर हैं हम
जड़ से दुश्मन उखाड़ देते हैं
जब भी खुलकर दहाड़ देते हैं
अच्छे अच्छों की फाड़ देते हैं
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दौलत शोहरत ताकत किस्मत
कोई जीता कोई हारा
जीतना है तो दिल को जीतो
दिल का रिश्ता सबसे प्यारा
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---------- जबाब दो ---------
सीमा पे शहादत देने तो
बस फौज को हमने भेजा है
क्या नेताओं को संसद में
बस मौज को हमने भेजा है ??...
---------- अंतर ----------
हममें पाकिस्तान में अंतर
बूझ सके तो बूझ ??
हम हैं मूछें शेर कीं
वो कुत्ते की पूँछ
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जो बचा ले कसाईखाने से
ऐसे इंसाफ की ज़रूरत है
आज इंसान को नहीं मोहन !
गाय को आपकी ज़रूरत है
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- बृजेश यादव
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विजयादशमी के अवसर पर
ना चूकें इस काम से
अन्दर का ही रावण मारें
अन्दर के ही राम से
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------------- नमन ----------------
जिनके पदचिन्हों का समय भी
अनुशरण करता है
ऐसे राष्ट्र सपूतों को ये
राष्ट्र नमन करता है
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चरणों में बिठाले माँ
चाकर ही बनाले माँ
तेरी ममता का मैं प्यासा हूँ
मुझे पास बुलाले माँ
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सरगमों की साधिका हो
कृष्ण स्वर तुम राधिका हो
तुमको शायद ही पता हो
तुम लता हो...
तुम लता हो...
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- बृजेश यादव
* मेरी अरदास देवी माँ से *
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ना शेष बचे मुझे देने को
कुछ भी न भले तुम देना माँ
ममता हर इक दुखियारे को
मुझसे पहले तुम देना माँ
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दुआ बद्दुआ जो भी हमको मिली है
असर किसका होगा ये रब तय करेगा
वही जानता है किसे ! क्या ! है देना
मिलेगा किसे ! और कब ! तय करेगा
लौटने - लौटने में अंतर है
बोलो तुम किस प्रकार लौटोगे ?
कर समंदर ये पार लौटोगे
या किनारे से हार लौटोगे ??
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अच्छे दिन हों तो ये सारी दुनिया
हर कदम पर ही मुझे साथ नज़र आती है
बुरे हालात हैं आईने की तरह
जिसमें असली मेरी औकात नज़र आती है
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चाहे तो कुछ भी हमसे ना सुनिए
चाहे तो कुछ भी हमसे ना कहिए
इस ज़माने को देख लेंगे हम
आप बस हमको देखते रहिए
******** कड़वी गोली *********
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तेल लगवाने के जो आदी हों
तेल लेने वे खुद चले जाएं
ऐसे लोगों से मेरा
मेल नहीं हो सकता
मेरी कविता में मेरी बातों में
कुछ भी हो
तेल नहीं हो सकता
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*******मीठी जन्माष्टमी पर एक कड़वा सच*******
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चीरहरण सब सीखे तुमसे चीर बढ़ाना भूले ध्यान
रास रचाना सीखे तुमसे लाज बचाना भूले ध्यान
हे योगेश्वर कृष्ण तुम्हारा व्यर्थ हुआ गीता का ज्ञान
कटती गायें ! देतीं हायें ! कैसे हो ! मानव कल्याण
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-बृजेश यादव
दो दिन के लिए तो ग़ज़ब के राष्ट्रभक्त हैं
दो दिन के लिए तो ग़ज़ब का राष्ट्रवाद है
छब्बीस जनवरी हो या पन्द्रह अगस्त हो
क्या हमको इसके बाद तिरंगे की याद है ??
मैं पतझड का प्यासा पंछी
तुम मधुवन की खुशबू सी हो
हम दोनों का मेल हो कैसे
मै अनपढ, तुम उर्दू सी हो
अपना दम घुटवाया हमको खुली हवा देने को
रात ओढली तुमने हमको नई सुबह देने को
झूले फांसी पे तिरंगे को थाम
उन शहीदों को मेरा सलाम
काश ऐसा गुलाल हो जाए
रूह तक लाल लाल हो जाए
तुझमें देखूं तो राधिका देखूं
और मुझमें गोपाल हो जाए
हर चेहरे पर छा गए
इंद्रधनुष के रंग
कहीं भंग पे रंग है
कहीं रंग में भंग
दल-बदलू को हमने पल में , संग बदलते देख लिया
संग बदलकर कथनी का भी ढंग बदलते देख लिया
कौन से रंग से होली खेलें , इसी सोच में डूबे हम ??
नेताओं को हमने सारे रंग बदलते देख लिया
गिरवी पहले से ही,
दो बीघा मेढ रखी है
क्यों विधाता ने हमसे
जंग छेड रखी है???
लाख गहरा है ,मानता हूँ मगर,
आप क्यों इतना खौफ खाए हैं
लोग ऐसे भी इस जहाँ में हैं,
जो समंदर भी नाप आए हैं
चाय पिला कर,दूध पिला कर,
बना जाऐंगे उल्लू
हमें चुनाव के बाद मिलेगा ,
बाबाजी का ठुल्लू ???
गठबंधन का सरल अर्थ है , स्वार्थों का रक्षाबंधन,
कठिन अर्थ है टूटन,बिखरन,इकदूजे का सिरमुंडन ।।
मंचों के सिरमौर कवि हैं........................
सब कहते हैं घोर कवि हैं................
नब्बे प्रतिशत गीत चुराया......................
तब जाना वे चोर कवि हैं................
आके मैंने शहर धन संजोया बहुत .........
.फिर भी लगता है पाने से खोया बहुत ....
गाँव मुझको शहर ने न आने दिया ...............
गाँव मेरा दिवाली पे रोया बहुत ......
जो जगमग हुआ है घरों से दिलों तक .......
उमर भर दीयों का उजाला न निकले .......
यही प्रार्थना है सभी के लिए ................
दिवाली ही निकले दिवाला न निकले.........
है ज्यादा रोशन कौन दिया .........
तुम बूझ सको तो बतलाना ........................
माटी का दिया है तेल भरा ...............
या दिल का दिया है प्रेम भरा ...............?
आओ ऍसे मनाएँ दीवाली .................
दिल दिये तरह ही रोशन हो.................... ..............
प्रेम की ऐसी रोशनी महके ......
जिस्म कंचन हो रूह चंदन हो..............
दीवाली पर दीप सजाओ, खूब सजाओ ,अच्छा है.........
बाती बनकर नहीं जले तो दीप जलाना बेमतलब..............
महापुरुषों की प्रतिमा लगाओ, खूब लगाओ अच्छा है.........
आदर्शों पर नहीं चले तो प्रतिमा लगाना बेमतलब...
क्यूँ सिसकता है आज जन-गण-मन............?
कौन पूंछेगा रहनुमाओं से ..........?
लगता है हम वोटरों को नोचकर खा जाएँगे.………………………………………….... ..
जिस तरह से ये सियासी गिद्ध मँडराने लगे .…………………. ……… …………......
तोला भर प्यार ,दया रत्ती भर ...
इतना भी आदमी होने के लिए काफ़ी है ...
चार दिन बाद ही समझ पाए ...
चार दिन की ये ज़िन्दगानी है ...
अब वो आएँ न आएँ उन्हें इख्तियार ....
उनके सजदे में पलकें बिछी रहने दो ....
मन के मोहन तुम्हें याद जबसे किया ...
लम्हा लम्हा मेरा ब्रन्दावन हो गया ...