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Brajesh Yadav

 

 

 

 

 

 

दो दिन के लिए तो ग़ज़ब के राष्ट्रभक्त हैं
दो दिन के लिए तो ग़ज़ब का राष्ट्रवाद है
छब्बीस जनवरी हो या पन्द्रह अगस्त हो
क्या हमको इसके बाद तिरंगे की याद है ??

 

गिरवी पहले से ही,
दो बीघा मेढ रखी है
क्यों विधाता ने हमसे
जंग छेड रखी है???

 

 

 

.फिर भी लगता है पाने से खोया बहुत ....

गाँव मुझको शहर ने न आने दिया ...............

गाँव मेरा दिवाली पे रोया बहुत ......

 

कौन पूंछेगा रहनुमाओं से ..........?

 

लम्हा लम्हा मेरा ब्रन्दावन हो गया ...

 

 

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