श्री वरुण सक्सेना एक सरकारी उच्च अधिकारी हैं, आयु 55 के क़रीब होगी। अपने
सारे काम पूरी निष्ठा से करते हैं। बुद्धिमान हैं, अपने कार्यालय मे अच्छी
छवि है। याददाश्त इतनी अच्छी है कि क्रिकेट मे कब क्या हुआ या कोई ऐतिहासिक
घटना हो तुरन्त बता देते हैं। कभी कभी उनकी पत्नी कहती हैं ‘’आपको तो कौन
बनेगा करोड़पति मे जाना चाहिये। जब भी यह कार्यक्रम देखते हैं फटाफट उत्तर
देते जाते हैं, कोशिश करके एक बार वहाँ पंहुच जायें तो कम से कम 50 लाख तो
जीत ही सकते हैं।‘’
याददाश्त इतनी अच्छी होते हुए भी सक्सेना साहब के लियें अपनी पत्नी और
बच्चों का जन्मदिन याद रखना मुश्किल होता है, पर बच्चे और पत्नी इन अवसरों
के आने से पहले ही इतने उत्साहित रहतें हैं कि उन्हे याद आ जाता है। कभी
बच्चे पहले आकर कह देते हैं ‘’मम्मी पापा शादी की सालगिरह मुबारिक हो’’ तो
उन्हे भी याद आ जाता है कि पत्नी को मुबारकबाद दे दें।
सक्सेना साहब की सबसे बड़ी परेशानी है कि वो लोगों के और कभी कभी स्थानों
के नाम भी भूल जाते हैं। कभी किसी पार्टी मे कोई बहुत दिन बाद मिलता और
उत्साहित होकर पूंछता ‘’कैसे हैं सक्सेना साहब, पहचाना नहीं क्या ?’’
‘’अरे, कैसी बात कर रहे हैं पहचानूँगा क्यों नहीं।’’ कहने को तो सक्सेना
साहब कह देते, वो उन महाशय को पहचान भी रहे होते, बस नाम दिमाग़ से फ़िसल
जाता। ऐसे मे वहाँ से खिसक लेने मे ही भलाई समझते कि कहीं बात बढ़े और पोल
खुल जाय।
सक्सेना साहब का अपना परिवार काफ़ी बड़ा है। अपने भाई बहनों के नाम तो याद
रहते थे पर उनके बच्चों के नाम कभी कभी भूल जाते है। उनकी पत्नी के परिवार
मे बहुतों के दो नाम थे घर का एक नाम और असली नाम कुछ बिल्कुल अलग, वहाँ तो
उनकी मुश्किल दोगुनी हो जाती है। सक्सेना साहब को अक्सर सरकारी काम से शहर
से बाहर जाना पड़ता था। एक बार वो नई दिल्ली से लखनऊ मेल मे सवार हुए। रात
का समय था ट्रेन चल चुकी थी वे आराम से सोने की तैयारी मे थे, कंडक्टर ने
आकर भारतीय रेल का पास देखा, जैसे ही वह जाने को हुआ तो सक्सेना साहब ने
कहा ‘’मुझे हरिद्वार मे जगा देना।‘’
कंडक्टर ने कहा ‘’सर, ये ट्रेन हरिद्वार नहीं जाती।‘’
‘’अरे, कैसे नही जाती लखनऊ मेल ही है न। ‘’
कंडक्टर ने कहा ‘’जी सर लखनऊ मेल ही है, पर हरिद्वार इस रूट पर नहीं
पड़ता।‘’
सक्सेना साहब कहने लगे अच्छा, ‘‘लखनऊ से क़रीब ढाई घंटे पहले कौन सा स्टेशन
आता है ?’’
‘’सर, हरदोई’’ कंडक्टर ने जवाब दिया।
‘’बस, वहीं जगा देना’’ सक्सेना साहब ने कहा।
‘’जी सर’’ कहकर कडक्टर मुस्कुराता हुआ चला गया।
बीनू भटनागर