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पुलिस के सोटे यानि डंडे

 

शहर के सब से बढिया थाने में नया २ थानेदार आय | सीधी थानेदार भर्ती हुआ था पुलिस के व्यवहारिक चाल चलन नजरिये या तौर तरीकों से अभी वाकिफ यानि परिचित नही था |परन्तु उत्साह वन था यानि जोशीला बहुत था नौकरी भी नई २ थी उस ने जैसे ही थाने का चर्ज सम्भाला तो सब से पहले मुंशी को बुला कर उस से माल खाने का हिसाब किताब जान लेना चाहा उस के लिए माल खाने में और माल के अलावा जो सब से महत्व पूर्ण वस्तु थी वह थे सोटे यानि डंडे तो नये साहब ने मुंशी से पूछा कि भाई हमारे पास माल खाने में कितने सोटे हैं उन का हिसाब किताब दिखाओ |

थान एक मुंशी नये साहब के इस बेतुके और अचनक के सवाल से भौंचक्का रहा गया परन्तु समझ गया कि साहब अभी नया २ है कुछ दिन में सब समझ जायेगा कि पुलिस के तैर तरीके क्या हैं नया होने के कारण कुछ दिन तो रौब मरने के लिए शोर करेगा ही बाद में खुद ही ठीक हो आयेगा इस लिए मुंशी ने इस बात पर गौर ही नही क्या परन्तु नया साहब इस बात के पीछे ही पपड़ गया कि भाई सोतों का हिसाब दो कितने हैं तो मुंशी ने समझाया कि साहब माल कहने की सब से महत्वपूर्ण और कीमती चीज है बंदूक यदि एक भी बंदूक इधर से इधर हो गई या कारतूस इधर से उधर हो गया तो मुश्किल हो जाएगी नैकरी पर बन आएगी इस लिए मैं आप को सब से पहले ब्न्दूल और कारतूस गिनवा देता हूँ डंडों का क्या करोगे |परन्तु साहब नया थ और गुंडों को सुधारना चाहता था तो उस के लिए डंडे ही कहिये थे इस लिए साहब अड़ गया कि मुझे बंदूकों से कुछ लेना देना नही है और इतनी भरी २ बंदूक को ले कर भी कौन जायेगा इसे न तो उग्र वादी चुरायेंगे और न ही कोई और क्यों कि इस में वजन ही इतना है और वैसे भी कौन सा वे चलाने के काम आती हैं वह तो यूं ही कंधे पर लटकने के काम आती है बस दिखने भर को या हाथ में पकड़े रखी जाती हैं और उसे ले कर कोई भ्काग थोड़ी सकता है शयद वह पुलिस को डी ही इस लिए जातीं हैं कि ताकि चोर आसानी से भाग सकें और पुलिस उस बोझ के कारण कुछ दूर चल कर ही वापिस आ जाये और वैसे भी यदि सिपाही चोर के उपर बंदूक चलाये और चोर को कुछ ओ जाये तो तो बस सिपाही की तो गई नौकरी चोर के घर वाले सिपाही पर ही हत्या का मुकद्दमा दर्ज करवा देंगे और मनवा धिकरवादी चोर और आतंकी की लाश ले कर सडक पर रखवा कर आन्दोलन शुरू करवा देंगे और आन्दोलन से डर कर सरकार भी सिपाही पर ही मुकद्दमा दर्ज करवा देगी इस लिए ये बंदूकें किस काम की हैं उन्हें गिनने का क्या फायदा वे तो जैसी पडी हैं पडी रहने दो परन्तु पुलिस का असल माल तो डंडे या सोटे ही होते हैं इस लिए इन को गिनवाओ |

नये थानेदार साहब मानते हैं कि पुलिस का असली माल तो ये डंडे ही हैं क्यों कि इन्ही के बल पर तो वह उग्रवादियों से लडती है बड़े २ लुटेरों को काबू करती है अच्छी २ बड़ी २ जान स्बहों को भंग कर देती हैसडक रेल रोक रहे लोगों को इन्ही डंडों के बल पर खदेड़ देती है इन्ही डंडों के डंडों से शरीफ आदमी पुलिस थानों या चौकियों में जाने से भी डरता है इसी डंडे से अच्छे २ कम्पते हैं पुलिस के इस डंडे की महिमा भारतीय पुलिस ही नही अमेरिका , इंग्लेंड या पूरे विश्व की पुलिस में है इस लिए थाने दार साहब अड़ ग्य४ए कि भाई मुझे डंडों का हिसाब हर हाल में चाहिए |

आखिर थाने के मुंशी को लगा कि अब तो डंडों का हिसाब देना ही पड़ेगा | साहब बिना हिसाब लिए बिना मानेंगे नही तब उस ने मजबूर हो कर नये साहब को बताया कि साहब हम ने ये डंडे एक दो जगह नही कई जगहों पर दिया हुआ है या इन डंडों को लोग हम से मांग कर ले गये हैं तो मुंशी जी बताओ न कहाँ २ पर हैं डंडे तब उस ने बताया साहब जी कुछ डंडे तो हम ने जबरदस्ती लगाये हुए साइकिलस्टैंड वालों को दिए हुए हैं क्यों कि जनता वैसे तो आसानी से काबू आती नही हैं जहाँ मर्जी साइकिल या मोटर साईकिल खड़ी कर देती है इस लिए कुछ इस काम के लिए हम से डंडे मांग कर ले गये हैं कि ताकि वे लोगों से ठीक से उन के वहन खड़े करवा सकें और उन से किराया वसूलने के लिए ही तो हमारे डंडे की जरूरत पडती है वैसे आसानी से कौन देता है |

चलो ठीक है साहब बोले पर और डंडे कहाँ हैं साहब जी उन का भी बता रहा हूँ मैंने अभी अपनी बात खत्म थोड़ी की है कुछ डंडे हम ने शहर की ऑटो यूनियन व तर्क यूनियनों को दिए हुए हैं जो शहर में अलग २ जगहों पर बनी हुई हैं वे इसी डंडे के सहारे अपने स्टेंड दूसरे स्टेंड के ऑटो को सवारी नही लेने देती है नही तो सवारियों के चक्कर में रोज इन के रोज सिर फूटें इसी तरह कुछ दूसरी चीजों की यूनियनों को दिए हुए हैं |

साहब जी डंडे तो हमारी मर्जी से ले गये हैं पर कुछ डंडे तो सर नेताओं के चमचे जबरदस्ती ले गये हैं या हम से ही मांग कर ले गये हैं वे जहाँ मर्जी इन्हें होती है वहीं इन डंडों को बजा कर चल देते हैं और उस के बाद तुरंत नेता जी से फोन करवा देते हैं फिर सर हमे ही मामले को रफा दफा करवाने जाना पड़ता है पर डंडों को वे वापिस ही नही देत हैं अपने ही पास रखे रहते हैं कई बार जब हम वापिस लेने की कोशिश करते हैं तो सर वे ही हमे उल्टा हमे ही धमका देते हैं कि नौकरी करनी है या नही या ऐसी २ जगहों पर तबादला करवाने की धमकी देते हैं कि हम तो वहाँ की सोच कर भी पसीने आ जाते हैं तो हम सोचते हैं मरने दो डंडों को |साहब हमारे भी तो बाल बच्चे हैं |

साहब जी कुछ डंडे हमे आपसदारी में भी दिए हुए हैं जैसे हमारा स्टाफ जहाँ २ रहता हिया उम्हे भी तो मोहल्ले में रहेने के लिए एक दो डंडे चाहियें ताकि उन के अड़ोसी पड़ोसी उन्हें आराम से रहने दें क्यों कि यह डंडा तो उन्हें वहाँ रहने देता है नही तो पुलिस वालों को कौन जीने देता है क्यों कि ये किसी को आराम से कहन जीने देते हैं ये डंडे उन के घर पर न हों तो वे रोज पिटे क्यों कि उनके कारनामे ही ऐसे होते हैं इन्ही डंडों से मोहल्ले में शान्ति बनी रहती है और लोगों को भी पता रहता है कि यहाँ पुलिस का आदमी रहता है |

हाँ सर कुछ लोगों ने हमारे डंडों की नकल कर के ऐसे ही डंडे खुद ही तैयार कर लिए हैं उन में से पता ही नही चल रहा कि वे हमारे डंडे हैं या नकली हैं क्यों कि वे उन का प्रयोग बड़ी चालकी से करते हैं और लोग भी उन्हें हमारे ही डंडे समझ कर चुप रह जाते हैं और हमारे पास शिकायत भी नही करते हैं और कई बार वे लोग खुद भी इन्हें पुलिस के डंडे ही बता देते हैं और मोहल्ले में या गाँव में इन के सहारे ही खूब दादा गिरी करते हैं |

बस साहब जी ऐसेही कुछ और डंडे भी इधर उधर गये हुए हैं तो नये साहब बोले तो अपना स्टाफ तो खाली हाथ ही रह गया वह खाली हाथ कैसे काम करेगा | तब मुंशी ने बताया कि साहब जी स्टाफ को डंडों की क्या जरूरत है स्टाफ के लिए तो बस उस की वर्दी ही काफी है इसी वर्दी के कारण ही उन के खाली हाथ भी डंडों का काम करते हैं खाली हाथ दिखा कर ही आसानी जेब भर लेते हैं और फिर साहब जी दिखने को तो साढ़े सात पौंड की रीफ्ल भी तो है वे भी तो डंडों का ही काम करती हैं और सर बाक़ी कुछ डंडे नेताओं की सुरक्षा में भी तो लगाया हुआ है जो स्थाई रूप से उन की सुरक्षा में ही रहते हैं|

नये साहब बोले कि भाई ये बता कि इतने सारे डंडे शहर भर में तुमने यों ही बाँट रखे हैं क्या ? मुंशी ने ज्बबा दिया कि नही साहब आप अभी नये २ आये हैं अभी आप पुलिस को महकमे को जानते नही हैं जैसे खाली घर को लोग किराये पर दे देते हैं और उस से उपर का खर्चा पानी चलता रहता है हाथ भी खुला रहता है और किराये ठीक से आता रहे तो कुछ बचत भी हो जाती है सूखी तनख्वाह में भला कहाँ गुजरा चलता है उस में बोतल क्या पव्वा भी नही आता और फिर सर रखे २ ही कौन सा उन का आचार पड़ रहा था उन्हें समभलते गिने ही सारा टाइम खरब होता रहता यदि इधर उधर चलते रहेंगे तो कुछ आमदनी ही करेंगे यूं समझो हम ने उन्हें किराये पर दिया हुआ है जिन का किराया हर महीने आसानी से चुपचाप आता रहता है |

साहब की समझ में डंडों की गिनती तो आ गई फिर वे बोले कि भाई आमदनी का हिसाब भी तोकोई रखता होगा हाँ सर इस काम में कोई बेईमानी नही कर सकता आमदनी का पूरा २ हिसाब किताब रखा जाता है इस बात की आप फ़िक्र मत करें इस महीने का हिसाब तो आप से पहले वाले साहब आप के आने से पहले ही कर गये हैं और अब अगला महिना शुरू होने में दिन ही कितने रहे हैं उस का हिसाब आप के सामने ही होगा | हम तो साहब आप के कर्मचारी हैं और जैसा आप आदेश करेंगे आप के आदेश का पालन किया जायेगा यही तो सर हमारी ड्यूटी है |

शब बोले तो ठीक है भाई ड्यूटी ठीक से करो और हिसाब भी ठीक रखना इमां दारी से हिसाब में कोई गडबड न हो इस बात ध्यान रखना जरूरी है क्यों कि हिसाब में गडबड हिने से घर की बात बाहर जताई है क्यों कुछ लोग दूसरों की बातें ही सूंघते फिरते हैं बस उन से सावधान रहना |मुंशी जी ने साहब को पूरी तरह आश्वस्त किया कि आप जरा भी फ़िक्र न करें साहब जी जितनी आप की उम्र है उतनी तो मेरी नैकरी हो गई है आप बेफिक्र हो कर रहो बाक़ी काम मैं अपने आप सम्भाल लूँगा |

 

 

डॉ वेद व्यथित

 

 

 

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