जज़्बातों को उकेरती तमाम तस्वीरें बदस्तूर सामने आती हैं,
सरकार जब जान के मुआवज़े में हज़ार दे कर मुँह मोड़ जाती है...
जो मरे .. उनकी जान के सदके तो बस जान ही निकल गई,
एक जान की जी हूज़ूरी में सारी सरकार लग जाती है...
है वो अन्धेरे जो पनपते हैं चिरागों की तह के नीचे,
पढ़ी हुई किताबो को दीमक जब चाट जाती है...
मशाल बुज़ुर्ग के हाथ में है , सब पीछे चल निकले,
सोच बदलो समाज बदलेगा, पर
नई कौम को ये बात कम समझ आती है...
पर... गुनाह E अजीम तो है..
आगे की पंक्ति मे भेड़ियों की भीड़ बकरी बन घुस जाती है,
असल को , हमेशा चुनौती नकली देता है ...
इस कदर लोगों के चेहरों पे नकाब की संजीदगी बैठ जाती है...
ये चोर है .... वो चोर है .......... चोर चोर चिल्लाते चिल्लाते
अन्दर बैठे चोर से सबकी नजर हट जाती है ......
जो हैं गद्दार बिन मुकदमे गोली मारो .............. पर , साहिब!! ,
कौन बने मुंसिफ़ हर दामन मे सोचते ही सिकुड़न आ जाती है...
बहुत है .. ग़म इस जहान में... पर आशिक को तो हर परेशाँ हाल मे
माशूका ही दिख जाती है
यम , यामिनी भी कामायनी लगे.............. यानी .. सूरत .. दोस्त
जहन्नुम की ज़मी पर बन जाती है...
बहुत सुना " चोर के सिर मोर,,,,,!" पर साहिब लाल पीली बत्ती की दौड़ में
घर की बहुयें उन्ही बस्तियों को परोस दी जाती हैं,
बस्तियाँ ... हाँ ... वही ...
जिधर इंसान नाम का जानवर सा एक जीव जीता है ...
कम्ज़र्फ़ियत की हद है ... जमीं के जीव की कदर नही की,
ना जाने कितनी सम्पदा मंगल पर जीवन ढूँढने मे नाली सी बह जाती है ..
कौन करें नाले नरदे से निकासी... मुँह में कपडा बांध के निकलो,
हीनता के सर्प दंश से देखो ........
पर वोट के मोह में कामायनी सुन्दर बाला ..
" पापा" के लिये टाईट जींस पहन बस्तियों की फेरी लगाती हैं...
ले लो बाबू जी !!!!!!!!!!!!!!
टोकनी से लश्कर बने लबों पे लाली... लगे अभी खून चूस के निकली ये नारी,
पर ..
इस शक्ल से अक्ल वालो की नजर फिर जाती है ...
यही तो जिन्दगी है ........ जो , चेहरे पर चेहरा ... पहने जाती है
मेरा यही....... मैं कायर हूँ ..... इसलिये देख कर अंजान बना ,
क्या आप भी ?? यही सवाल की उंगली हर किसी पर मेरी उठ जाती है...
चलो , फिर बस्तियों की ओर... इन नालियों को साफ करें ,
तब मंगल पर जीवन ना मिले... ना मिले...
पृथ्वी नामक नरक पर .. स्वर्ग की वर्गाकार आकृति उभर ही जाती है ...
अरे... माफ करना आपका गणित मजबूत है ..
पर मेरा तो वर्गाकार वही ...
"जो भगत , आज़ाद , सुखदेव , तिलक का था..""
*तब देखना..........
सूरत बदल जाती है ........... है !!!!!! पर
ये चन्द बिन्दुओं का रिक्त स्थान भरने की औकात किसी अकेले मे नही...
तो कोशिश ... एक से मिला एक से ही पूरी हो पाती है.....
* अनुराग त्रिवेदी -एहसास *